Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
View full book text
________________
॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
|| स्मरणस्तोत्राणि ।।
॥ ५०९ ॥
पणयससंभमपत्थिवनहमणिमाणिकपडिअ पडिमस्स । तुह वयण पहरणधरा, सीहं कुद्धपि न गणंति ॥१३॥ ससिधवलदंतमुसलं, दीहकरुल्लालवुड्ढउच्छाहं । महुपिंगनयणजुअलं, ससलिलनवजलहराऽऽरावं ॥१॥ भीमं महागइंदं अच्चासन्नपि ते न वि गणंति । जे तुम्हचलणजुअलं मुणिवइ तुंगंसमलीणा ॥१५॥ समरम्मि तिखखग्गा भिघाय पविद्ध उद्ध्यकबंधे । कुंत विणिभिन्न करिकलहमुक्कसिकारपउरंमि ॥१६॥ निज्जियदप्पुद्धररिउनरिंदनिवहा भडा जसं धवलं । पावंति पावपसमिण पासजिण तुहप्पभावेण ॥१७॥ रोगजलजलणविसहरचोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई ॥१८॥ एवं महाभयहरं पासजिणिंदस्स संथवमुआरं । भवियजणाणंदयरं कल्लाणपरंपरनिहाणं ॥१९॥ रायभयजक्खरक्खसकुसुमिणदुस्सउणरिक्खपीडासु । संझासु दोसु पंथे उवसग्गे तह य रयणीसु ॥२०॥ जो पढइ जो अनिसुणइ ताणं कइणो य माणतुंगस्स । पासो पावं पसमेउ सयलभुवणच्चिअचलणो ॥२॥ उवसग्गंते कमठासुरम्मि झाणा उ जो न संचलिओ। सुरनरकिन्नर जुवईहिं संथुओ जयउ पासजिणो ॥२२॥ एअस्स मज्झयारे अट्ठारसअक्खरेहिं जो मंतो। जो जाणइ सो झायइ परमपयत्थं फुडं पासं ॥२३॥
५-अजितशान्तिस्तवः अजिअं जिअसव्वभयं, संतिं च पसंतसव्वगयपावं । जयगुरु संतिगुणकरे, दो वि जिणवरे पणिवयामि ॥११॥ गाहा
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660