Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 587
________________ || स्मरण । कल्याणकलिका. खं० २ ॥ स्तोत्राणि ।। हत्थिहत्थबाहुं धंतकणगरुअगनिरुवहयपिजरं पवरलक्खणोवचिअं सोमचारुरुवं, सुइसुहमणाभिरामपरमरमणिज्जवर- 1 देवदंदुहिनिनायमहुरयरसुहगिरं ॥९॥ वेड्ढओ। अजिअं जिआरिगणं, जिअसव्वभयं भवोहरि । पणमामि अहं पयओ,पावं पसमेउ मे भयवं ॥१०॥ रासालुद्धओ। कुरुजणवयहत्थिणाउरनरीसरो पढमं तओ महाचक्कवट्टिभोए महप्पभावो, जो बावत्तरि पुरवरसहस्सवरनगरनिगमजणवयवई, बत्तीसारायवरसहस्साणुणायमग्गो। चउदसवररयणनवमहानिहिचउसट्ठिसहस्सपवरजुबईण सुंदरवई, चुलसीहयगयरहसहसहस्ससामी छन्नवइगामकोडिसामी आसि | जो भारहम्मि भयवं ॥११॥ वेट्टओ । तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे ॥१२॥ रासानंदिअयं । इक्खागविदेहनरीसर ! नर-वसहा ! मुणिवसहा ! नवसारयससिसकलाणण ! विगयतमा ! विहुअरया !! अजिउत्तमते अगुणेहिं महामुणि अमिअबला ! विउलकुला । पणमामि ते भवभयमूरण जगसरणा मम सरणं ॥१३॥ चित्तलेहा ॥ देवदाणविंदचंद सूरवंद ! हट्ठ तुट्ठ जिट्ठ परम, लट्ठरुव! धंतरुप्पपट्टसेअसुद्धनिद्धधवल, । दंतपंति! संति! सत्तिकित्तिमुत्तिजुत्तिगुत्तिपवर!, दित्ततेअ वंद! धेअ! सव्वलोअभाविअप्पभावणे अ पइस मे समाहिं ॥१४॥ नारायओ ॥ For Private & Personal Use Only HEMA चा || ५११ ॥ Jain Education International www.jainelibrary.org

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