Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 563
________________ All दा थान 10 G स । कल्याणकलिका. खं० २॥ स्तवमंत्राः ॥ ॥ ४८७॥ च AHA ran १८-पातालमन्तरिक्षं, भवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । साऽत्रावतरतु जैनी, प्रतिमामधिवासना देवी ॥ १९-विश्वाशेषसुवस्तुषु, मन्त्रैर्याजसमधिवसति वसतौ । सेमामवतरतु श्री-जिंनतनुमधिवासना देवी ॥ २०-प्रोत्फुल्लकमलहस्ता, जिनेन्द्रवरभवनसंस्थिता देवी । कुन्देन्दुशुक्लवर्णा, देवी अधिवासना जयति ॥ २१-यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्रीजिनबिम्ब सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥ २२-जइ सग्गे पायाले, अहवा खीरोदहिम्मि कमलवणे । भयवइ करेहि सत्तिं, सन्निझं सयलसंघस्स ॥ २३-अट्ठविहकम्मरहियं, जा बंदइ जिणवरं पयत्तेण । संघरुप हरउ दुरियं, सिद्धा सिद्धाइया देवी ॥ २४-सर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये, वैयावृत्त्यकराः सुराः । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ॥ सूचना :- प्रत्येक विधान प्रसंगे कराता देववन्दनमा प्रतिष्ठाप्य जिनस्तुति अने ते पछीनी बे एम ३ स्तुतिओ कहेवाइ गया पछी सिद्धाणं बुद्धाणं पछीना कायोत्सर्गान्ते शान्तिनाथ आदिनी स्तुतिओ कहेवाय छे. कदापि अधिकृतजिनस्तुति याद न होय तो "अहस्तनोतु स." इत्यादि स्तुतिओ कहेवी. (२) स्तवोः - १-पंचपरमेष्ठि-महास्तवः । (वज्रपंजरस्तोत्रम्) परमेष्ठिनमस्कार, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्र-पञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥११॥ | १. "जैनं विम्बं" इत्यपि पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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