Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
View full book text
________________
॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
-
॥ स्तुतिस्तवमंत्राः ॥
॥ ४९० ॥
तेयाला चवीसा, तीसच्छत्तीस सत्ततीसा य । कम्मवणदहणनिउणा, जिणवसहा दिंतु मह सिद्धिं ॥२॥ पणतीसा इगुयाला, बायाल तिवीस इगुणतीसा य । कल्लाणपंचकलिया, संघस्स कुणंतु कल्लाणं ॥३॥ बावीसा अडवीसा, चउतीसा दुगुणवीस छायाला । सिहिअहियाहियहिअ वाहिय, दुद्रुट्ठियमोहजोहहरा ॥४॥ इगुणयाला पणयाला, छब्बीसा सत्तवीस तित्तीसा । जरमरणरोगरहिया रणरहिया मंगलं दिंतु ॥५॥ इगतीसा बत्तीसा-द्रुतीस चउचत्त पन्नवीसा य । वंतरभूयपिसाया, रक्खसगहरक्खग्गा हुंतु ॥६॥ इय विहिणा सत्तरिसयं, पडलिहियं जो थुणेइ अच्चेइ । तस्स न पहबइ विग्धं, सिग्धं सिद्धिं समज्जिणइ ॥७॥ सिरिनन्नसूरिपणयं, सत्तरिसयं जिणवराण भत्ताण । भवियाण कुणउ संति, पुलुि तुहिँ थिई कित्तिं ॥८॥
६-शाश्वताऽशाश्वतजिनस्तवः पश्चानुत्तरशरणा, ग्रैवेयककल्पतल्पगतसदना । ज्योतिष्कव्यन्तरभवन- वासिनी जयति जिनराजी ॥१॥ वैताढ्यकुलाचलनाग-दन्तवक्षारकूटशिखरेषु । ह्रदवर्षकुण्डसागर-नदीषु जयताञ्जिनवराली।॥२॥ इषुकारमानुषोत्तर-नन्दीश्वररुचककुण्डलनगेषु । सिद्धालयेषु जीयाज्जिनपद्धतिरिद्धतत्त्वासि ॥३॥ यत्र बहुकोटिसंख्याः, सिद्धिमगुः पुण्डरीकमुख्यजिनाः । तीर्थानामादिपदं, स जयति शत्रुजयगिरीशः ॥४॥ अष्टापदाद्रिशिखरे निजनिजसंस्थानमानवर्णधराः । भरतेश्वरनृपरचिताः, सद्रत्नमया जयन्तु जिनाः ॥५॥ ऋषभजिनपदस्थाने, बाहुबलिविनिर्मितं सहस्रारम् । रत्नमयधर्मचक्रं, तक्षशिलापुरवरे जयति ॥६॥
॥४९०॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International
Page Navigation
1 ... 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660