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॥ प्रस्ता
|| कल्याण
कलिका. खं० २॥
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वना ।।
अने जे जे वस्तुओ शास्त्रीय छतां पोताना जाणवामां नथी अथवा ते मतभेद समजीने तेणे ते ग्रहण करी नथी ते सर्वसंमत होय तो 18 ग्रहण करे, आवी व्यवस्थाथी केटलाये मतभेदो विधिमाथी निकली जशे, केटलीये भूलो नाबूद थशे अने आपणुं प्रतिष्ठा विषयक साहित्य व्यवस्थित थइने सर्वभोग्य बनशे.
आपणा प्रतिष्ठाकल्पो, एना आधारे कराती प्रतिष्ठा विधिओ, प्राकालीन तथा पश्चात्कालीन तथा विधानोमां थयेल महत्वपूर्ण परिवर्तनो, वर्तमानमां थतां विधिविधानोमां अवश्य कर्तव्य संशोधनो अने विधिविषयक एक पद्धति इत्यादिने अंगे हजी कहेवा जेवू घणुं छे, उपोद्घातमां आथी अधिक भाग्ये ज लखी शकाय.
११-प्रकृतखण्डानुषंगी१-६ परिच्छेद - बीजा खंडमां तमाम विधिओनो संग्रह छे आना २१ परिच्छेदोमां प्रारंभना ६ परिच्छेदोनो संबन्ध चैत्यनिर्माणमा थती विधिओनी साथे छे, १-२ परिच्छेद शिल्पशास्त्रानुसारी छे, ३ जो परिच्छेद प्रतिष्ठाकल्यानुसारी छे, ४ था परिच्छेदमां शिलान्यास विधिओ शिल्पशास्त्रोक्त छे पण अन्तमा एक प्रतिष्ठाकल्पोक्त शिलान्यास विधिनो पण आमा समावेश करेलो छे. परिच्छेद ५-६ नी विधिओ निर्वाण- कलिकाने आधारे लखायेली छे.
७-१२ परिच्छेद - ७ माथी १२ मा सुधीमा प्रतिष्ठाविधिओ छे ७ मो परिच्छेद निर्वाणकलिकोक्तविधि प्रतिष्ठाविधिनुं निरूपण करे छे अने मूलविधिना शब्देशब्दनो गुजराती अनुवाद छ, ८ मो परिच्छेद सकलचंद्रीय प्रतिष्ठाकल्पोक्त दशाह्निक विधिनुं निरूपण करे छे, आ परिच्छेदमां सकलचंद्रीय प्रतिष्ठाकल्प तथा गुणरत्नसूरीय प्रतिष्ठाकल्प आ बनेनो समावेश थइ जाय छे, ९ थी ११ सुधीना परिच्छेदो क्रमशः चैत्यप्रतिष्ठा, कलशप्रतिष्ठा अने ध्वजदंड प्रतिष्ठानुं विधान बतावे छे, आ त्रणेय परिच्छेदो प्राचीन हस्तलिखित विधिओने आधारे
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