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॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
॥ शिलान्यास ॥
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पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, अने मध्य आ प्रमाणे जणाव्यो छे, नवशिलावादिओ- आग्नेय, दक्षिण, नैर्ऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, | ईशान, पूर्व अने मध्य; आ दिशाक्रमथी नन्दादि ९ शिलाओ अनुक्रमे स्थापित करवी अg विधान करे छे, दाक्षिणात्य पद्धतिमा नवशिलाओनी स्थापना पूर्वथी आरंभ करीने मध्यमां समाप्त करवानुं विधान छे. अर्थात् प्रथम पूर्वमा पछी आग्नेय कोणमां; इत्यादि सृष्टि क्रमे आठमी ईशानमा अने नवमी शिला मध्यमां आवे छे. ___अष्ट शिलापक्षमा शिलान्यास क्रम जुदोज छ, वास्तुभूमिमा प्रथम खूणाओमां चार चोरस कोष्ठको (खातो) करवां, आग्नेय तथा वायव्य कोणनां कोष्ठको पूर्वाग्र अने नैर्ऋत्य तथा ईशान कोणनां कोष्टको उत्तराग्र करवां, प्रत्येक कोष्ठकमां बे बे शिलाओ कोष्ठको प्रमाणे स्थापित करवी, प्रथम आग्नेय तथा वायव्य कोष्ठकोमा पूर्वाग्र अने नैर्ऋत्य तथा ईशान गत कोष्ठकोमा उतराग्र बेबे शिलाओनां युगलो स्थापित करवां. अष्ट शिला पक्षमा एक बीजो पण स्थापना क्रम दाक्षिणात्य ग्रंथोमा आपेलो छे, ते क्रम पूर्वथी प्रारंभीने सृष्टिक्रमे ईशानमां | छेल्ली शिला स्थापवानो छ, आम दाक्षिणात्य पद्धतिना आ अष्टशिला अने नवशिलाना पक्षमा मात्र एक शिलानीज न्यूनता रहे छे, बीजो फेरफार नथी.
शिलान्यासनां वास्तुस्थानो - माल भरवानां गोदामो, राज्याभिषेक आदिना मंडपो, साधुओने रहेवानो मठो, उपाश्रयो, रसोडाओ, सर्व जातिना लोकोने रहेवानां घरो, नाटकशालाओ, देवमंदिरो, सभामंडपो, किल्लाओ, नगरनां द्वारो अने पारिवारिक गृहोना निर्माण समये शुभ मुहूर्तमा प्रथम शिलान्यासनी विधि करवी जोइये.
शिलान्यास केटलो नीचे करवो ? - शिलान्यास वास्तुभूमिना उपरितन तलथी केटलो नीचाणमां करवो जोइये जे वस्तु शिल्पीगणेसारी रीते समजी लेवा जेवी छे, अपराजितपछा ग्रन्थना निर्माण समय सुधीमां देवालय संबन्धी वास्तुमां जलान्त अथवा पाषाणान्त |
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