Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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।। कल्याणकलिका खं०२॥
शतिजिनस्तुतयः ॥
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(२३) देहो बत्तविवन्नपन्नगफणाछत्तेण छन्नंबरो, सामासामसरीरओ रयतमोमुक्को समुक्कोसओ।
वम्माए विसुओ सुयामरनईनीहारसेलोवमो, सो पासो भवपा(वा)सपासयसमं सज्जो पसाहिज्ज मे ॥२३॥ (२४) वामंगुट्ठतलेण जेण चलिए मेरुमि जाया मही, हल्लंताचलसंचया ससिहरा झल्लंज्झलंतोदहि । तेलुकिकपरिकम महिहरासीरं गहीरं जणा ! तं वीरं पणमेह मोहपसमं दुक्खग्गिउल्हावणे ॥२४॥
॥ सत्तरीसय जिनस्तुतिः ।।। जे रिटुंजणसंनिगासतणुणो जे कीरकायप्पहा, जे बालारुणसोणचारुरुइणो जे कंचणुकेरभा । जे कंबुज्जलकंतिणो समहिआ ते सत्तरीए सयं, सव्वक्खित्तविवत्तिणो जिणवरा मे हुतु खेमंकरा ॥२५।।
॥सर्वजिनस्तुतिः ॥ किंकिल्लीसुमहल्लपल्लवचओ पुप्फाण बुट्ठीकरा, सद्दो भद्दकरो निसाकरकराकारप्पहा चामरा । सीहालंकियमासणं तणुपहापूरो तहा दुंदुही, रम्मं छत्ततियं च जेसि सुहया ते संतु तित्थेसरा ॥२६॥
॥ तीर्थस्तुतिः ॥ नीसेसुत्तमपुन्नपुंजकलिया पावंति जं जंतुणो, वत्तो जंमसमुभवे य कमसो सब्बा सुहासंपया । कल्लाणावलिवल्लिकंदसरिसं संमोहसेलासणी, तित्थं तित्थकराण दुत्थदलणं सिग्धं भवेज्जा मम ॥२७॥
॥ वैयावृत्यकरस्तुतिः ॥ जे तित्थंकरमंदिरेसु महया तोसेण किच्चे रया, संघे सब्वगुणायरंमि सहियं दावंति भत्तं च जे ।
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॥ ४८० ॥
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