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॥ कल्याण- कलिका.
॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥
॥ ४५८
हर हर सर सर हूँ सर्वदेवेभ्यो नमः, ११ अमुकनिकायमध्यगत, २ अमुकजातीय, ३ अमुकपद, ४ अमुक व्यापार, ५ अमुक |
देव, इह मूर्तिस्थापनायां अवतर अवतर तिष्ठ तिष्ठ चिरं पूजकदत्तां पूजां गृहाण गृहाण स्वाहा !" | आ मंत्रबडे ३ वार वासक्षेप करी कोइपण देवमूर्तिनी प्रतिष्ठा करवी. एज प्रमाणे चारे निकायनी देवीओनो पण प्रतिष्ठा करवी.
गणिपिटक, शासनयक्ष, ब्रह्मशान्ति निक्रति आदि व्यन्तरमां, सोम यम आदि लोकपालो भवनपति निकायमा इन्द्र आदि वैमानिक निकायमां गणवां.
(४) ग्रहप्रतिष्ठाविधि - प्रथम प्रतिष्ठित प्रासादमा अथवा घरमा बृहत्स्नात्रविधिथी जिन मूर्तिन स्नपन करवू.
पछी एक बे त्रण चार पांच के जेटली मूर्तिओनी आवश्यकता होय तेटली मूर्तिओ अथवा नवग्रह खोदेल के चित्रेल पाटलो जे होय ते सर्व जिन मूर्तिने आगे स्थापन करवा अने जिन स्नात्रजलथी मिश्रित पंचामृतथी ते पखालवा, शुद्धजले पखाली, लूछीने कोरा करवा, पछी धूप उखेबी नीचेना मंत्रो बडे एक एक ग्रहनो मंत्र त्रण त्रण वार भणीने उपर त्रण त्रण वार वासक्षेप करी ते ते ग्रहनी प्रतिष्ठा करवी.
जे जे ग्रहनी मूर्तिनी प्रतिष्ठा करवी होय ते ते ग्रहनो प्रतिष्ठा मंत्र भणीने तेनी मूर्ति उपर वासक्षेप करवो.
१.१ प्रतिष्ठाप्य देव भवनपति व्यन्तर वैमानिक के ज्योतिषी जे निकायनो होय तेनुं नाम अमुक स्ताने लखवू २ भवनपतिओमां असुर कुमारादि, व्यन्तरोमां भूतपिशाच आदि, वैमानिकोमा सौधर्मभव आदि शब्द लखबो. ३ पदनी पूर्वमा इन्द्रसामानिक बाह्याभ्यन्तरादि पार्षय त्रायखिंश, अंगरक्षक लोकपालादि शब्द लखवो. ४ तत्तद् कर्तव्य-गुणकीर्तनादि यथासंभव विशेषण लखवू. ५ देवनुं नाम लखवू ।
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