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॥ कल्याण
कलिका. कान
| अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥
खं० २॥
एकली ग्रहमूर्तिनी ज प्रतिष्ठा होय तो "इह मूर्ती" आटलुं ज बोलवू. मूर्ति अने स्थापनीय ग्रह नंग बंन्नेनी प्रतिष्ठा होय तो मंत्रमा | "इह मूर्ती स्थापनायां" आम बोलवू, अने एकला स्थापनीय ग्रह नंगनीज प्रतिष्ठा होय तो - "इह स्थापनायां" एटला शब्दो बोलवा.
| ग्रह प्रतिष्ठा करीने जिन प्रतिमा आगल वर्द्धमान स्तुतिओथी चैत्यवंदन करवू, स्तवनने बदले शान्तिपाठ कहेवो.
(५) सिद्धमूर्ति प्रतिष्ठा विधि जिनशासनमां पंदर भेदे सिद्ध मानेला छे, त्यां जे लिंग वेषमा जे सिद्ध थया होय ते वेषमा तेमनी मूर्ति भराववी, ते सिद्धमूर्ति कहेवाय छे, बधा प्रकारनी सिद्धमूर्तिओनी प्रतिष्ठाविधि समान छे.
प्रतिष्ठा करावनार गृहस्थ होय तो प्रथम तेना घरे शान्तिक तथा पौष्टिक करवू. ते पछी बृहत्स्नात्र विधिथी स्नात्र करीने प्रतिष्ठा करवी, मूलमंत्र द्वारा सिद्धमूर्तिन पंचामृत स्नात्र करी मूल मंत्र द्वारा ज मूर्तिना सर्व अंगोमा ३-३ बार बासक्षेप करीने तेनी प्रतिष्ठा
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करवी.
याल
सिद्धमूर्तिनी प्रतिष्ठानो मूल मंत्र नीचे प्रमाणे छ - ॐ अं आं ह्रीं नमो सिद्धाणं बुद्धाणं सब्वसिद्धाणं श्रीआदिनाथाय नमः । जे जे लिंगमां सिद्ध थयेल सिद्धनी मूर्तिनी प्रतिष्ठा होय ते ते लिंगधारीओनी भक्ति करची, उपयुक्त वस्तु, पात्र, भोजनादिनुं दान
ला
प्रतिष्ठा करावनार साधु होय तो मूलमंत्रे मंत्रित करीने सिद्धमूर्ति उपर त्रण वार वासक्षेप नांखे. आथी सिद्धमूर्तिनी प्रतिष्ठा थइ जाय छे. बहु विधि करवानी जरूरत नथी.
ॐ
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