Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 521
________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ४४५ ।। Jain Education International अष्टोत्तरी स्नात्रनां पूर्वकृत्यो प्रथम अबोट पाणी छंटावी, भूमि शुद्ध करावी, शुद्ध सधवा स्त्री पासे कुंकुमनी गोहली देवरावबी, उपर चोखानो साथियो पूरावी, सोपारी मूकीये, परनालियो बाजोट मांडी ते उपर चंद्रुओ बांधवो, ध्वजा २ आरोपीने ते पछी पूर्व सन्मुख अथवा उत्तराभिमुख प्रतिमा ४ स्थापन करवी. अने पछी ग्रह, दिक्पालोनी स्थापना करवी. ग्रह स्थापन विधि पछी एक पाटले सूखड केसरथी नवग्रह आलेखीये, यंत्रने अनुसार ग्रहोनो आलेख करवो. ॐ आदित्याय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २ ।। ॐ चन्द्राय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २ ॥ ॐ भौमाय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २ ॥ ॐ बुधाय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २ ॥ For Private & Personal Use Only ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ।। ४४५ ।। www.jainelibrary.org

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