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॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
॥ मध्यकालीन अंजनशलाका
॥ ३४१ ॥
विधि ।
त्रीजा वलयमा पूर्वादि ८ दिशाओमां प्रतिदिशा विदिशामा ३-३ कोष्ठक करी प्रतिकोष्ठ के जिनमातानु एक एक प्राकृतनाम 'प्रणवादि | स्वाहान्त' लखवू, यथा 'ॐ मरुदेवीए स्वाहा १, ॐ विजयाए स्वाहा २' एज प्रकारे सेणा ३, सिद्धत्था ४, मंगला ५, सुसीमा ६, पुहवी ७, लक्खमणा ८, रामा ९, नंदा १०, विण्हु ११, जया १२, सामा १३, सुजसा १४, सुब्बया १५, अचिरा १६, सिरी १७, | देवी १८, पभाबई १९, पउमावई २०, वप्पा २१, सिवा २२, वामा २३, तिसला २४ ।
माताओना उपरना चोथा वृत्तमा पूर्वादि ८ दिशाओमां प्रत्येकमा २-२ घरो करी सोल विद्यादेवीओ लखवी. जेमके-'ॐ रोहिणीए | नां त्मां स्वाहा । ॐ पन्नत्तीए ही क्षीं स्वाहा । ॐ वज्जसिंखलाए ली स्वाहा ३। ॐ वजंकुसीए ल्मां वां स्वाहा ४॥ ॐ अप्रतिचक्राए | झाँ स्वाहा ५ । ॐ पुरिसदत्ताए त्मां स्वाहा ६॥ ॐ कालीए सां हैं स्वाहा ७ । ॐ महाकालीए ॐ मां स्वाहा ८॥ ॐ गोरीए यूँ ग्रयूँ स्वाहा ९ । ॐ गंधारीए र क्षाँ स्वाहा १०। ॐ सव्वत्थ महाजालाए लूँ हाँ स्वाहा ११॥ ॐ माणवीए यूँ क्ष्मा स्वाहा १२॥ ॐ वहरुट्टाए तूं माँ स्वाहा १३ । ॐ अच्छुत्ताए यूँ माँ स्वाहा १४॥ ॐ माणसीए ग्लँ माँ स्वाहा १५ । ॐ महामाणसीए हं हूँ स्वाहा १६ ॥
विद्यादेवीओनी उपरना पांचमा वृत्तमा आठे य दिशाओमा ३-३ कोष्टको बनावी लोकांतिक देवीनो विन्यास करवो. ते आ प्रमाणे -
ॐ सारस्वतेभ्यः स्वाहा, ॐ आदित्येभ्यः स्वाहा, ॐ वह्निभ्यः स्वाहा, एज रीते नामनी आदिमां 'ॐ' अने अन्तमा चतुर्थीनुं बहुवचन लगाडवू अने छेल्ले 'स्वाहा' शब्द मूकीने बधां नामो लखवां, आगेनां नामो वरुण ४, गर्दताय ५, तुषित ६, अव्याबाध ७, रिष्ट ८, अग्न्याभ ९, सूर्याभ १०, चंद्राभ ११, सत्याभ १२, श्रेयस्कर १३, क्षेमंकर १४, वृषभ १५, कामचार १६, निर्माण १७, दिशांतरक्षित १८, आत्मरक्षित १९, सर्वरक्षित २०, मरुत २१, वसु २२, अश्व २३ अने विश्व २४ ।
छट्ठा वृत्तनी पूर्वादि आठे य दिशाओमां अनुक्रमे ॐ सौधर्मादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा । ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा । ॐ चमरादीन्द्रादिभ्यः
॥ ३४१ ॥
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