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॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥
उक्त ग्रहशान्तिक प्रतिष्ठाना प्रारंभमां के एवा ज कोइ महत्वपूर्ण कार्य प्रसंगे करवामां आवे तो पूजीने ग्रहोनी स्थापना जिनबिम्बना | जमणा हाथनी दिशामा राखी मूकवी. प्रतिष्ठादि कार्य थइ गया पछी ज्यारे बीजा देवोनुं विसर्जन कराय त्यारे एर्नु पण विसर्जन कर, पण संघ प्रयाणावसरे के बीजा एवा शुभ प्रसंगे शान्तिक कर्यु होय तो सर्वनी पूजा प्रार्थना थया पछी ग्रहोर्नु विसर्जन करी देवें.
उक्त ग्रहशान्तिक प्रायः शुभ कार्य प्रसंगे करवानुं छे. आमां कार्य प्रसंगनी निर्विघ्न समाप्ति माटे सर्व ग्रहोनी पूजा प्रार्थना करवामां आवे छे. ग्रह विशेषनी पीडाशान्ति निमित्ते शांतिक कर, होय तो तेनी विधि कंडक भिन्न छे. जे विधि जुदी आपेली छे.
|| इति ग्रहशान्तिक ।।
॥ ग्रहशान्तिकम् ।।
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११ गोचरग्रहपिडा शान्तिकविधिः (२) आ ग्रहशान्तिकमां पण ग्रहनी पूजा प्रार्थना तो उपरना शान्तिकमां कह्या प्रमाणे ज करवानी होय छे. मात्र मंत्र पाठमां "इदमयं पाद्यं बलिं चरुं" आम 'बलि' पछि 'चरूं' आ शब्द वधारीने मंत्र पाठ बोलवानो होय छे. आ शान्तिकमा विशेषता 'होम' नी छे. कोइ पण ग्रहनु शान्तिक होय तेनी पूजा प्रार्थना कर्या पछी १०८ वार होम करवो पडे छे, अने स्थापना शान्तिनाथजीनी प्रतिमा आगल ज नहिं पण ते ते ग्रह प्रतिबद्ध जिन प्रतिमा आगे तेना ज वारना दिवसे तेनु शान्तिक करवू पडे छे. राहु केतुर्नु शान्तिक शनिवारे कराय छे.
जे ग्रह- शान्तिक होय तेनां होमनां द्रव्यो अने दानना पदार्थो प्रथमधी मंगावीने पासे राखवां, दरेक ग्रहना होममां कुंड त्रिकोण |
॥ २६६ ॥
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