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I ॥ कल्याणकलिका. |
॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र
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विधि ।।
दईने विधिपूर्वक स्नात्र करवू, अने सर्व कोइए पूजा कर्या बाद आरती मंगलदीवो प्रकटाववो.
शान्ति कलश भरवानी विधि - | पखालनी कुंडीमाथी पाणीनो कलश भरवो, अने पछी ते जल बीजी कुंडीमां मोटी शान्तिना पाठ बोलवा पूर्वक अखंड धाराए
लेबु, शान्ति कहे त्यां सुधी धारा चालू राखवी, कुंडी मध्ये प्रथम “ॐ ह्रीं नमः" ए मंत्र लखवो, तेने नीचे दशियावाड-अखंड वस्त्र मांडवू, कुंडीमा रूपामहोर अर्थात चोखंडो रूपैयो अथवा रूपानाणुं मूकबुं, कुंडीने गले गेवासूत्रे बांधवू, उपरथी मध्यभाग पर्यन्त | चारे बाजु लटकती एक पुष्पमाला पहेराववी. शान्ति पूरी थया पछी ए स्नात्रजल, पुष्प अने रूपैया सहित कुंडी मांथी कलशमां भरवू, कलशना मुख उपर चार बाजु ४ पान मुकी उपर नालियेर मूकी गेवासूत्रे वींटवो. अने ते कुंभ घरधणीने माथे उपडावबो, पण कुंभ भूमि उपर न मूकवो, पछी रांधेल बलि बाकुला वडे देवताओनुं विसर्जन करवू. आह्वान करतां जे प्रमाणे पाठ बोल्यो हतो तेज प्रमाणे "बलिं गृहाण २" अहीं सुधी बोलवो अने ते उपरान्त “स्वस्थानं गच्छ २ स्वाहा" एटलो वधारे बोलवो. ___ पछी चतुर्विध संघनी पूजा करे अने स्नात्रकारोने नालियेरनी प्रभावना आपे, इति अष्टोत्तरीशतस्नात्रविधि समाप्त.१.२
१. आदर्श पुस्तक १ नो लेखन कालादि सूचक अंतिम लेख-संवत १६३९ वर्षे फागुण शुदि ११ दिने लिखतं अहम्मदावादात् गणिश्री पुण्यसागर शीश गणिश्री देवसागर वाचनार्थ, श्री । २ आदर्श पुस्तक नं. २ नो लेखन कालादि सूचक अंतिम लेख-सं. १६८० वर्ष कार्तिक वदि ५ रवी वीरमग्राम पं. विमलसी लिखितं ॥ कल्याणमस्तु ।। ग्रंथाग्रं १४० ॥
२१०८ पूजामा बच्चे बच्चे समयप्रमाणे ॐ नमोऽहते परमेश्वराय चतुर्मखाय, परमाष्टिने दिकुमारी परिपूजिताय, दिव्य शरीराय, त्रैलोक्यमहिताय, देवाधिदेवाय अस्मिन् जंबूद्वीपे भरतक्षेत्रे दक्षिणार्धभरते, मध्यखंडे.....देशे, ......वारे .....प्रासादे श्री शांतिनाथस्वामि मंडपे, ....पुण्य निश्रायां, श्रोष्टिचर्य श्री.. ....... बृहत्शांतिस्नात्रविधि महोत्सवे स्नात्रस्य कर्तुः कारयितुत्र श्री संघस्य च ऋद्धिं वृद्धि कल्याणं कुरु कुरु स्वाहा । आ प्रमाणे श्री संघने बोलाव, ।
यान
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याला
॥ २१८ ॥
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