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॥ नव्य
।। कल्याण-|
कलिका. खं० २॥
| प्रतिष्ठा
पद्धतिः ॥
।। ७१ ।।
बाला
मंडपनी सजावट सारामां सारी करची, पण तेमां भयजनक, दुःखजनक के उपद्रवसूचक दृश्यो न बनाववां, शोकसूचक रंगो अथवा तेवां वस्त्रो पण विशेष प्रमाणमां न वापरवां.
तीर्थोनां दृश्यो, जिन-कल्याणकोना प्रसंगो, बोधदायक घटना चित्रो अने धार्मिक इतिहासने ताजो करनारा धार्मिक प्रसंगोना पडदाओ अने सिनेरीओथी मंडप विशेष आकर्षक बने छे, पाणीना फुवाराओ, जलझरणाओ, नदीओ अने तीर्थस्वरूप पर्वतोनी रचनाओथी तो मंडप खरेखर तीर्थरूप बनी जाय छे, मंडपना मध्य भागमां वेदी बनाववी.
(५) वेदीनी रचना मंडपनी जेम वेदीओ पण घणा समय पूर्वे मंडपने अनुसारे बनती पण आ पद्धति आजे प्रचलित नथी, छेल्ली प्रतिष्ठा पद्धतिओमां वेदी ३ हाथ समचोरस अने १॥ हाथ उंची बनाववानुं विधान छे, पण आजे ए विधान चालतुं नथी, जो मंडप चोरस होय तो वेदी
पण चोरस बनावाय छे, पण मंडप वाम दक्षिण दीर्घ होतां वेदी पण वाम दक्षिण लंबी बनावाय छे, गमे तेम होय पण वेदीनी लंबाई, - पहोलाई अने ऊंचाई बनेमा शुभ आय तो होवो ज जोईये. | प्रतिमाओ घणी होय अने मण्डपर्नु मध्यपद विशाल होय तो वेदी तेने अनुसारे मोटी बनाववी, अने वेदीनो मध्य भाग वधारे
उंचो बनावी तेनी चारे दिशाओमा त्रण पांच आदि मेखलाओ बनाववी, के जेथी घणी प्रतिमाओ रही शके अने सरखी रीते तेओना | दर्शन थइ शके.
वेदीनी उंचाई तेना अंगने अनुरूप करवी पण ३५ इंचथी ओछी तो न ज करवी. वेदीना मध्य भागमा खाडो करी तेमां पंचरत्ननी पोटली आदि मांगलिक पदार्थो मूकवां.
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॥ ७१ ।।
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