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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
। जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥
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- पान फूल प्रमुख पुंखणानो सामान लेइने पोंखे, पोखवानो चढावो करी देवद्रव्यनी वृद्धि करवी, पण पोंखनार स्त्री निर्दोष होवी जोइये, I पोखवानी रीति थया पछी प्रतिमाधर पग नीचे संपुट चांपीने घरमा आवे.
जो मुहूर्तने वार होय तो बिम्बने बाजोठ उपर बेसारे, अने मुहूर्तनो समय नजीक आवतां प्रतिमा लेई मंडपमा उभो रहे त्यां बीलब चन्दनना छाटां देवा,
जे पीठ स्थानके प्रभु स्थापना होय ते स्थानके फरता चक्रनी माटी, वृषभशृंगथी उखडेल माटी, गजदन्तथी उखडेल माटी, समूलो डाभ, श्वेत सर्षप, दूर्वा, जब, अखंड चोखा, तथा व्रीहि ए ८ आठ वानां मूकवा, ते बच्चे चोखंडो रुपियो मूकी उपर त्रांबानो पतरो मूकबो, पतरा उपर चन्दन, केसर, कस्तुरी बरास, अंबर, अगर, मिरच, कंकोल, सुवर्णरज, आ पदार्थोथी बनेल यक्षकर्दम सोनाना | अथवा तो रुपाना कचोलामां घाली ते वडे दक्षिणावर्त्त स्वस्तिक करवो, अने तेनी ४ पांखडीये कूर्ममंत्र लखवो, मंत्र कुंभक श्वास करीने लखबो.
ते पछी गुरु उभा उभा - "ॐ ह्रीं क्ष्वी सर्वोपद्रवाद्विम्बं रक्ष रक्ष स्वाहा ।" आ मंत्र बोली कपूरादि मिश्रित सुगंधी केसर चंदनना छांटा प्रत्येक दिशामां नाखीने दिग्बन्ध करे, मुहूर्तनो समय नीकट आवतां स्वरोदय साधी - "ॐ ह्रीँ जीराउलि पार्श्वनाथाय नमः" आ मंत्र वार ७ अने नमस्कार मंत्र वार ७ गणवो, पछी - "ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां" ए शब्दो मुखे उच्चरीने नीचेनो मंत्र भणवो, - "ॐ कूर्म निजपृष्ठे जिनबिम्बं धारय धारय स्वाहा" उक्त कूर्ममंत्र बोली श्वास कुंभक करीने श्रीजिनबिंबने मूल स्थाने स्थापे, साथे लावेल मंगलकुंभ प्रभुने जमणे पासे स्थापबो. १०८
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