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छाला
॥ प्रस्ता
॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
का
बना ॥
बा
।। ६०॥
व्यवस्था करे के जेनो खर्च करनार गृहस्थने हिसाब सुधां अपातो नथी ए केटलुं बधुं शरमजनक छ? बोलावनारने तो ते वखते विधिकारथी | काम लेवानुं होय एटले ते भले हजार नुकसान करी नांखे तो ये ते न झलके, पण आ प्रकारनी गेरवाजवी लूट करनारी विधिकारनी रीतभातथी तेनो अन्तरात्मा अतिशय नाराज थाय छे अने परिणामे विधिकार उपरथी तेनो विश्वास उछी जाय छे, भोजकने रोजना पांच दश रुपिया ठरावीने लवाय तो पाछलथी दक्षिणा पेटे कंइ पण न आप, जोइये, अथला मंडलीना मेम्बर तरीके लान्या पछी निछरावल के वचगालानां दानो आपवां जोइये नहि, पण जती वखते प्रतिष्ठा करावनारने सूचनामात्र करी देवी जोइए के 'अमुक भोजक छे एटले तमारी इच्छा होय ते एमने आपी शको छो' आटली सूचना मात्रथी पण भोजकने तेनी सेवानो बदलो मली जशे अने विधिकार पोतानी मर्यादा अने प्रतिष्ठा जालवी शकशे.
१०-विधिविधानमां मतभेद न जोइयेआपणां गच्छमां बने त्यां सुधी प्रतिष्ठा, शान्तिस्नात्र के अंजनशलाका- क्रियाविधान एक ज पद्धति प्रमाणे थर्बु जोइये 'अमुक | भाइ आम करे छे अने अमुक तेम !' प्रतिष्ठा जेवा महात्सवोमां विधि विधानने अंगे आवा मतभेदोनी वातो भद्रिक परिणामी जीवोना हृदयमा अव्यवस्था तथा अश्रद्धाजनक निवडे छे जे सारी नथी. बीजुं आजे सामान्य जणाता आवा भेदो लांबाकाले मोटुं रूप धारण करी पोतपोतानी परम्पराओ स्थापित करशे, जेनुं परिणाम कुसंपना रूपमा आवशे. अमारी तो सलाह छे के सर्वविधिकारी तथा ए विषयमा रस धरावनारा सद्गृहस्थो निवृत्तिनो समय जोइ कोइ योग्य स्थाने पोतानुं संमेलन करे के ज्यां एमने योग्य सलाह-सम्मति आपी शके एवा आ विषयना जाणकार गीतार्थनो योग मली शके, प्रत्येक विधिकार पोतपोताना विधि संबन्धी पुस्तको लइने संमेलनमां उपस्थित थाय अने शांतिपूर्वक परस्परना विचारोनी आप ले करे अने जे जे पोतानी विधिविषयक प्रवृत्ति निराधार जणाय ते सुधारे
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