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॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
| प्रस्ताबना ॥
___ज्यां सुधी अमने स्मरण छे त्यां सुधी छाणी वडोदरा अमदावादना वीसमां सैकाना वृद्धविधिकारो आ प्रमाणे अयोग्य आडंबर करनारा न हता, धणे भागे तेओ श्रीसकलचंदजीना प्रतिष्ठाकल्पना विधि प्रमाणे ग्रह- दिक्पालोनुं पूजन करावता हता अने पट्टनुं नहि | पण नन्द्यावर्त पाटला उपर आलेखीने तेनुं पूजन करता हता, आजे पण केटलाक परिश्रमी अने श्रद्धालु विधिकारो ए प्रमाणे करावता हशे ए संभवित छे. छतां घणो भाग ते उपर जणावेल विपरीत मार्गे ज चाले छे ए निश्चित छे.
आजना विधिकारोमां केटलाक सारा अने सेवाभावी पण छे ए वातनो अमो स्वीकार करीये छीये, अने तेमनी धर्मश्रद्धा अने देवभक्तिनी मुक्त मनधी अनुमोदना करीये छीये. छतां प्रत्येक विधिकार निष्काम भक्तिभावथी आ लाभना कार्यमा प्रवृत्ति करतो रहे अने पोतानी प्रामाणिकताने डाग लागवा न दे एटला माटे आ स्थले एक सूचना करवानुं जरूरी समजीये छीये. ___आजकाल विधिकारोमा एक नवी प्रथा चालू थइ छे, अने ते पोतानी मंडली साथे एक भोजकने लइ जवानी. ज्यां सुधी अमने अनुभव थयो छे; आ प्रथा विधिकारोनी कीर्तिमा उणप अने प्रामाणिकतामां संदेह उत्पन्न करनारी छे, कोइ भोजक जाणकार होइ कार्यमां सहायक बने एवो होय तो तेने मंडलीना सभ्य तरीके अथवा तो रोजनी मजूरी ठरावीने नोकर तरीके साथे लेवामां विशेष बांधो नथी, पण एक 'याचक' तरीके तो तेने साथे न ज लेबो घटे, कारण के याचक तरीके साथे लेतां तेने डगले ने पगले दान आप, पडे छे अने ते पण प्रतिष्ठा करावनार गृहस्थद्वारा नहि पण 'विधिकार' ना हाथे, तेमां 'मोसाल ने मा पीरसनारी' ए कहेबत प्रमाणे बने छे, 'सो पच्चास के पच्चीस जे कंइ मंगाव, होय ते मंगावीने विधिकार पोते लइ ले छे अने आपवाना प्रसंगे जे कंइ आपे तेनुं अडधुं लगभग भोजकने हाथे लागे अने थोडंक बीजा बधाने भागे जाय, बली तेमांगें कंइक बचावीने ते पोताना मुकामे लइ जाय,' आ रीति सारा | विधिकारोना माननी क्षति करनारी छे, एक सारी प्रतिष्ठा दर्मियान विधिकार आवी रीते ५।६ सो रुपियानी पोताना हाथे मनस्वीपणे |
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