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७७-७१]
चतुर्दश सर्गः वाग्मिता हि येषां रुचिहेतुः सम्विदिता मनस्विनिवहे तु । यवत्र तूष्णीं नूपुरैः स्थितं जडप्रसङ्गे मौनं हि हितम् ॥७७॥ टीका-मनस्विनां विचारबतां निवहे समाजे सुत्पुनर्येषां मिता परिमिता वागेव वाग्मिता सा हि रुचिहेतुः प्रीतिकारणं सम्विसिता मता। तै पुरैः स्त्रीणां चरणभूषणेस्त्र भूषणं स्थितं मौनमादाय प्रावति । यद् यस्माज्जडानां मूर्खाणां उलयोरभेदात् पुनर्जलानां प्रसङ्गे मौनं विहितं भवति अर्थान्तरन्यासोऽलंकारः ॥७७॥ मोनमत्स्यकावेस्तु जोवनं ह्य त्पलजातेरस्ति यवनम् । गावोऽभ्युन्नतगिरेरागतं पय इत्येवं जगतोऽत्र मतम् ॥७८॥ उद्भिज्जातरमृतमितीष्टं विषममग्नये स्वतोऽस्त्यनिष्टम् । शिवमिति हिन्दुजनानामेतद्भुवनमन्वभूज्जनस्य चेतः ॥७९॥ ___टीका-एतत् यन्नद्यां तिष्ठति तन्मोनमत्स्यकादेस्तु जीवनं प्राणधारणमेव हि मतं । तया घोत्पलजातेः कमलसत्ताथा वनं निवासस्थानं मतं । अभ्युन्नतादिगरेरागतमस्तीत्यतो गाव इत्येवमेतद्गीयते। तथा जगतः पयः पातु योग्य, उद्भिज्जातेरकुरखूबदरमतममरणकारणमितीष्टं । विषममग्नये जनायास्ति यतस्तस्मै स्वतो ह्यनिष्टं भवति, हिन्दुजनानां वेदानुयायिनामेतच्छिवमिति, किन्तु जनस्यास्मवावेश्चेतस्त्वेतद् भुवनमित्यन्वभूत् । उल्लेखालंकारः॥७८-७९।। - अर्थ-विचारवान् मनुष्योंके समूहमें थोड़ा बोलना (वाग्मिता-प्रशस्त बोलना) रुचिकर होता है, यह सोचकर स्त्रियोंके नूपुर उस समय चुप हो गये थे सो ठीक ही है क्योंकि जड़-मूल् (पक्ष में जल) के प्रसङ्गमें मौन रह जाना ही हितकर होता है । यहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार है ॥७७॥
भावार्थ--जब विद्वानोंके समक्ष थोड़ा बोलना अच्छा है तब जलों-जड़ोंके समक्ष तो बिलकुल नहीं ही श्रेष्ठ होगा यह विचार कर नूपुर चुप हो गये थे उनकी रुनझुन बंद हो गयी थी।
अर्थ-नदीमें जो यह जल है वह मीन मत्स्य आदिका प्राणाधार होनेसे जीवन है। कमल कुमुद आदि उत्पल जातिका निवास स्थान होनेसे वन है। ऊँचे पर्वतसे आया है अतः गो है। जगत्के पीने योग्य होनेसे पय है, अंकुर आदि उद्भिज्जातिको अमृत्युका कारण होनेसे अमृत है, अग्निके लिए स्वयं अनिष्ट है अतः विषम (विष) है । वेदानुयायी हिन्दुओंके लिये वन्दनीय होनेसे शिव है और अस्मदादिजनोंका चित्त इसे भुवन है ऐसा अनुभव करता है।
भावार्थ-उपर्युक्त श्लोकोंमें पानीके विविध नामोंका उल्लेख किया गया
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