Book Title: Jayodaya Mahakavya Uttararnsh
Author(s): Bhuramal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 643
________________ १२४८ जयोदय-महाकाव्यम् |४-६ सहसा सह सारेणापदूषणमभूषणम् । जातरूपमसौ भेजे रेजे स्वगुणपूषणः ॥४॥ सहसेत्यादि-असौ जयकुमारः सहसा शीघ्रमेव सारेण उत्साहेन सह वर्तमानम् अपदूषणं दोषवजितम् अभूषणं च वेषभूषावजितं जातरूपं दिगम्बरत्वं भेजे धृतवान् सन् स्वगुणानां क्षमादीनां पूषेव सूर्य इव णः निर्णयकारकः सन् शुशुभे ॥४॥ सदाचारविहीनोऽपि सदाचारपरायणः । स राजापि तपस्वी सन् समक्षोऽप्यक्षरोधकः ॥५॥ सदाचारेत्यादि-सदा निरन्तरं यश्चारः पर्यटनं व्यर्थ भ्रमणं तेन विहीनः सन्नफि सवाचार एव परायण इति विरोधस्तस्मात् सदाचारे ध्यानस्वाध्यायादिलक्षणे परायणः तत्पर इत्यर्थः । समक्षः अपि पवित्रेन्द्रियः सन्नपि अक्षाणां रोधकः परिहारक इति विरोध. स्तस्मात् समक्षः सर्वसाधारणानां गोचरः, यद्वा सम्यग् अक्ष आत्मा स समक्षः सन् अक्षरोधकः इन्द्रियविजयी इत्यर्थः। स राजा पृथ्वीपालकः सन्नपि तपस्वीति विरोधस्तस्मात् स राजा शोभनशरीरः सन् तपस्वी जातः ॥५॥ हरेयैवेरया व्याप्तं भोगिनामधिनायकः । अहीनः सर्पवत् तावत् कञ्चुकं परिमुक्तवान् ॥६॥ अर्थान्तर-कमलोंको विकसित करनेके लिये सूर्यने कुमुदसमूहको स्वीकृत नहीं किया, किन्तु सानुग्रहता-शिखरोंके संग्रहसे सुशोभित उदयाचलको प्राप्त कर वह तपोधन-धर्मधन-धर्माधिकारी हो गया ॥३॥ अर्थ-जयकुमारने शीघ्र ही उत्साहसे सहित, दोषरहित एवं आभूषणरहित दिगम्बर मुद्राको धारण किया और आत्मगुणोंके सूर्यके समान निर्णायक हो सुशोभित होने लगे ॥४॥ ___अर्थ-वह मुनि जयकुमार सदाचार-निरन्तर परिभ्रमणसे रहित होकर भी सदाचारपरायण थे, निरन्तर परिभ्रमण करने में तत्पर रहते थे (परिहार पक्ष में ध्यान-स्वाध्याय आदि समीचीन आचार-आचरणमें तत्पर थे), राजा होकर भी तपस्वी थे (परिहार पक्षमें राजा-सुन्दर शरीर वाले होकर भी तपस्वी थे) और समक्ष-पञ्चेन्द्रियोंसे सहित होकर भी अक्षरोधक-इन्द्रियोंका निरोध करनेवाले थे (परिहार पक्ष में समक्ष-सर्वसाधारणके गोचर-मिलनेके योग्य अथवा समीचीन अक्ष-आत्मासे सहित थे.) ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690