Book Title: Jayodaya Mahakavya Uttararnsh
Author(s): Bhuramal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj

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Page 619
________________ १२२४ जयोदय- महाकाव्यम् [ १४-१५ हंसो योगी । कीदृशः सः ? शीतं चातपश्च सन्तौ प्रकृष्टौ शोतातपौ तौ प्रायशः सहते यः स शीतादिपरिषहः सहनकरः सन् । प्रायशब्दः प्रचरार्थकः ॥ १३ ॥ हसत्य सत्याशनदूरगः सन् जनो मनोहार्यशनं समश्नन् । साधोस्तु न स्वादनवृत्तिरस्य तस्मादनाचर्बणमत्यवश्यम् ||१४|| हसतोत्यादिद- जनः संसारी सोऽसत्यावप्रशस्तावशनाद् भोजनाव् दूरगः सन् मनोहारि यदशनं भोजनं तत्पुनः समश्नन् समास्वावयन्ं किल हसति प्रसन्नो भवति, किन्तु साधस्तु यतेः पुनरस्य स्वावनवृत्तिर्न भवति सुस्वादु किलेवमिदं तु न स्वावु भोजनमिति विचारात्मिका वृत्तिर्नास्ति । तस्मादवश्यं नूनमेवानाचर्बणं दन्तैश्चर्वणरहितं यथा स्यातथाति स्वोदरपूरणं करोति ॥ १४ ॥ कचेषु तैलं श्रवसोः फुलेलं ताम्बूलमास्ये हृदि पुष्पितेऽलम् । नासाधिवासार्थमसौ समासात् समस्ति लोकस्य किलाभिलाषा ॥ १५ ॥ कचेष्वित्यादि — लोकस्य संसारिजनस्य नासाया प्राणेन्द्रियस्याधिवासार्थं सन्तर्पणनिमित्तं समासात् संक्षेपात् कथ्यते । तदाशा कीदृश्यभिलाषा समस्ति ? हृदि वक्षःस्थलेऽलं यथेष्टं पुष्पिते पुष्पमालाभिरञ्चिते सति कचेषु मूर्धजेषु तैलमलं यथेष्टं स्याच्छ्रवसोः कर्णयोः फुलेलं पुष्पासवं स्यावास्ये मुखे ताम्बूलं पूगावियुक्तं बलमिति । अनुप्रासोऽलंकारः ॥१५॥ उष्ण आदि परीषहोंको प्रचुर मात्रा में सहन करनेवाला हंस-योगी कंकड़ सहित पत्थर तथा कील आदिके भीतर घुस जानेसे पीड़ायुक्त साधुओंके कर्कश स्पर्श वाले चरणों में हर्षपूर्वक कश प्रदान करता है, अर्थात् अपने हाथोंसे उनके पादमर्दन करता है ॥ १३॥ अर्थ- संसारी मानव अप्रशस्त-अनिष्ट भोजनसे दूर रहकर मनोहर भोजन करता हुआ प्रसन्न होता है, परन्तु साधुके स्वाद लेनेको वृत्ति नहीं होती, अर्थात् वे यह विचार नहीं करते कि यह भोजन स्वादिष्ट है और यह स्वादिष्ट नहीं है । इसलिये साधु नियमसे दाँतोंसे चर्बण किये बिना, अर्थात् स्वादका विचार किये बिना हो आहार करते हैं ||१४|| अर्थ- संसारी जनके नासिका इन्द्रियको संतृप्त करनेके लिये संक्षेप से ऐसी इच्छा रहती है कि केशोंमें पर्याप्त तैल हो, कानोंमें फुलेल हो, मुखमें ताम्बूल हो और वक्षःस्थल पर पुष्पों की माला हो ॥ १५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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