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९७५-७६ ]
एकोनविंशः सर्गः
णमो घोरगुणपरक्कमाणं कुष्ठादिनिवारणे प्रमाणम् । णमो घोरगुणबम्भचारिणं ब्रह्मराक्षसस्यापहारिणम् ॥७५॥ टीका-पद्यान्येतानि स्पष्टान्यतो न व्याख्यातानि ।।७३-७५ ॥
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णमोत्थु खिल्लोसहिपत्ताण मपमृत्युविनाशनाय वाणः । णमोत्थु आमोसहिपत्ताणं रोगशोकहृदिदं कल्याणम् ॥३६॥
णमोत्थु इत्यादि - णमो खिल्लोसहिपत्ताणं, एष आणशब्दोऽपमृत्युविनाशनाय भवति । वेति निश्चयतो बाण इव ततोऽनेन शनिवासरे कुमारिकाकर्तितस्य कौसुम्भकरञ्जितस्य सूत्रस्योपरि फूत्कृत्य गुग्गुलुधूपेन सन्धूपयित्वा च गर्भिण्याः कटीप्रदेशे प्रबन्धनेन गर्भस्तम्भो भवति । णमो आमोसहिपत्ताणं - इदं पदं रोगशोकापस्कारमारीदुर्भिक्षादिहृदिति कल्याणं मङ्गलकारकं भवति । अत्थुशब्दः पादपूरणार्थः । पूर्वोक्तप्रकारेण गन्धोदकमस्य विषमज्वरहरणाय स्यादिति ॥ ७६ ॥
अर्थात् इस मन्त्रके जापसे जलवृष्टि रोकी जाती है । णमो घोरतवाणं - घोरतपके धारक मुनियोंको नमस्कार हो, यह पद मुख सम्बन्धी रोगोंको दूर करने वाला है । णमो घोरगुणाणं- घोर गुणके धारक मुनियोंको नमस्कार हो, यह मन्त्र सिंहादिकका भय दूर करने वाला है । णमो घोरपरक्कमाणं - घोरगुण पराक्रमके धारक मुनियोंको नमस्कार हो, यह पद कुष्ठादिके निवारण करनेमें प्रमाणभूत है । णमो घोरबम्भचारिणं- घोर कठिन ब्रह्मचर्यके धारकमुनियोंको नमस्कार हो, यह मन्त्र ब्रह्मराक्षसकी बाधाका निवारण करने वाला है ।। ७३–७६ ॥
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अर्थ - णमो खिल्लोसहिपत्ताणं - खिल्लोषधि ऋद्धिको प्राप्त मुनियोंको नमस्कार हो, यह मन्त्र अपमृत्युको नष्ट करनेके लिये बाणके समान है । शनिवारके दिन कुमारी कन्याके द्वारा काते तथा कुसुमानी रङ्गसे रंगे हुए सूतपर इस मन्त्रसे फूंक देकर तथा गूगलकी धूपका धुआँ देकर उसे गर्मिणी स्त्रीकी कमरसे बाँध देनेपर असमय में गर्भपात नहीं होता । णमो आमोसहिपत्ताणं - आमौषधि ऋद्धिके धारक मुनियोंको नमस्कार हो, यह पद रोग, शोक, अपस्मार, हैजा तथा दुर्भिक्ष आदिको हरने वाला है, अतः कल्याण- मङ्गल कारक है । श्लोक में आया हुआ अत्थु शब्द पादपूर्तिके लिये है, मंत्रका अङ्ग नहीं है । गणधरवलय मन्त्रका गन्धोदक शिरपर लगानेसे विषम ज्वर भी दूर होता है ॥७६॥
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