Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 14
________________ ७० ७६ B ७४ ૭૧ ST ७६ ૭૭ ક ૭૬ 14 14 ७८ ७८ ほの =१ ANNNN ८३ ८३ ८४ ८५ =५ पक्ति ܐ १६ १४ ६ પૂ ६ ܪ १२ १५ ६ १४ १० ( १५ ) अशुद्ध कादम्बंशी कादम्ववंशी प्रचारक प्रचार "जिस समय जैनों का केन्द्र था" यह वाक्य काट दो । थो बुजानन होटसल श्रवणवेलम्भ वीर- पूर्ण जैनों को राष्ट्र इन पुरण लिये रवार वेल जरसय्या जहां रणाङ्गण उठान भ्राण अपने भविष्यदा श्रात्म गं. वाश्चित काबिल राजाश्रम १२ ८५ १४ ८६ ३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat इस गप्प पार्थिक शुद्ध थी बुचानन होयसल श्रवणबेलगोल वीरता पूर्ण " जैनों का राष्ट्र" इस पुराण लिये खारवेल जरसप्पा जहां शत्रु रणाङ्गण उठाना धारणा आपके भविष्यदत्त श्रात्मा को गौरवान्वित कालिब राजाश्रय इरुगप्प पार्थिव www.umaragyanbhandar.com

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