Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 28
________________ श्रीमद्भागवत पुराण में उनका चरित्र बड़े अच्छे ढङ्ग पर लिखा है और वह जैनवर्णन से सादृश्य रखता है । वहाँ भी उन्हें गभिराय और मरुदेवी का पुत्र लिखा है और कहा है कि वह आठवें अवतार थे। 'भागवतकार' यह भी कहते हैं कि 'सर्वत्र समता, उपशम, वैराग्य, ऐश्वर्य और महेश्वर्य के साथ उनका प्रभाव दिन-दिन बढ़ने लगा। वह स्वयं तेज़, प्रभाव, शक्ति, उत्साह, कान्ति और यश प्रभृति गुण से सर्व प्रधान बन गये।' (५४) ऋषभदेव जी जब सर्व प्रधान बन गये तो उन्होंने लोगों को रहन-सहन और करने-धरने के नियम बतलाने और वह सानन्द जीवन यापन करने लगे। जङ्गली जानवरों और प्रातताइयों के विरोध से अपनी रक्षा करने के लिए उन्होंने लोगों को हथियार बनाना सिखाया और स्वयं हाथ में तलवार लेकर उन्होंने लोगों को उसके हाथ निकालना सिखाये । यही क्यों ? कपड़ा बुनना, बर्तन बनाना इत्यादि शिल्पकर्म और लिखनापढ़ना, चित्र निकालना आदि विद्याओं का ज्ञान भी उन्होंने पहले पहल लोगों को कराया । राष्ट्रीय व्यवस्था और शिल्पकला तथा व्यापार की उन्नति के लिए उन्होंने वर्गभेद नियत किये । जिन्हें उन्होंने देश की रक्षा के लिए बलवान पाया उन्हें सैनिक वर्ग में नियत करके 'क्षत्र' नाम से प्रसिद्ध किया और जो मसि, कृषि एवं वाणिज्य कार्यो में निपुण थे, वह 'आर्थिक वर्ग' में रक्खे गये और 'वैश्य' नाम से उल्लिखित किये गये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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