Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 36
________________ ( १६ ) न थे । वह फिर रणक्षेत्र में आ डटे; किन्तु अब के दोनों राज्या में सन्धि हो गई । भला, देश के लिए मतवाले राष्ट्रसङ्घ वाले क्षत्रिय-वीरां के समक्ष मगध साम्राज्य के भाड़ेतू संनिक टिक हा कैसे सकते थे ? इस सन्धि के साथ ही लगध सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार के साथ राजा चेटक की पुत्री चेलनी का विवाह हो गया । चेलनी पक्की श्राविका थी और श्रेणिक बौद्ध धर्मावलम्बी था । इसलिये प्रारम्भ में तो चेलनी को बड़ा श्रात्म-सन्ताप हुआ था; किन्तु उपरान्त उसने साहस करके अपने पति को जैनधम का महत्व हृदयङ्गम कराना श्रारम्भ किया और सौभाग्य से वह उसमें सफल भी हुई। इस प्रकार न केवल राजा "चेटक", सेनापति “सिंहभद्र" और अन्य राष्ट्रीय सैनिक ही जैनधर्मभुक्त थे, श्रपितु सम्राट् “श्रेणिक", युवराज "अभयकुमार " और अन्य सैनिक भी जैनधर्म के भक्त थे। इन सब वीरों के चरित्र यदि विशदरूप में लिखे जायँ, तो एक पोथा बन जाय; परन्तु तो भी संक्षेप में इन जैन वीरों के खास जीवन- महत्व को स्पष्ट कर देना उचित है । x X x 1 राजा "चेटक" के व्यक्तित्व का महत्व उनके राष्ट्रपति होने में है । योरुप के बीसवीं शताब्दि वाले राजनीतिज्ञों को प्रजातन्त्र शासन पर घना अभिमान है; परन्तु वह भूलते हैं, भारत में इस शासन-प्रथा का जन्म युग पहिले हा चुका था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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