Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ (४७) को लूटते-खसोटते बड़े ताव से बढ़े चले आ रहे हैं, तो यह चुप न बैठ सके। उनकी नसों में रक्त उबल उठा! जो कुछ सेना थी, उसे बटोर कर वह निकल पड़े हिन्दुओं की मान रक्षा के लिये ! हाथिली गाँव में मुसलमान सेनापति सैयद सालार से उनकी मुठभेड़े हुई । बड़ा घमसान युद्ध हुआ और विजय श्री सुहृद्ध्वज के गले पड़ी ! मुसलमान अपना सा मुँह लेकर भाग गये! हिन्दुओं की लाज रह गई, जैनवीर सुहृद्ध्वज के बाहुबल से ! लोग बड़े प्रसन्न हुये ! किन्तु अभाग्य से सुहृद्ध्वज अपने शील धर्म को गंवाने के कारण राज्य से भी हाथ धो बैठे। कुछ भी हो, उनका नाम तो भी एक 'हिन्दू-रक्षक' के नाते अमर है। (२१) चन्देले-जैनी-वीर। पाला और ऊदल के नाम से हिन्दुओं का बच्चा-बच्चा परिचित है । चन्देले वंश इन्हों से गौरवान्वित है। सौभाग्यवशात् इस चन्देले वीर-कुल से जैनधर्म का सम्पर्क रहा है। चन्देरी में चन्देलों के राजमहल के निकट अाज भी अनेक जैनमूर्तियां देखने को मिलती हैं । सन् १००० में यह राजवंश उन्नति की शिखर पर था। इस वंश में सब से प्रसिद्ध राजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106