Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 95
________________ ( ७८ ) कलङ्क की बात है। जैन पुरण र जैन इतिहास तो अनेक वीराङ्गनाओं के आदर्श-चरित्रों से भरे पड़े हैं। उन्हें यहां दुहराने के लिधे न अवसर ही है और न पर्याप्त स्थान ! ईतने पर भी कुछ चमकती हुई वीराङ्गना का उल्लेख कर देना अनुचित न होगा! १-सम्राट "रवारवेल की पत्नी वजिरि भूमि के क्षत्रीराज की कन्या थीं। जिस समय खारवेल विजिर-राजा के वैरियों से घमासान युद्ध करते हुये बेहद आहत हो रहे थे और उनकी सेना के पाँव उखड़ रहे थे, उस समय इस राजकन्या ने अपनी सहेलियों के जत्थे के साथ शत्रु पर आक्रमण करके उसके छक्के छुटा दिये थे! खारवेल की विजय हुई शत्रु भाग गया ! अन्ततः उनका व्याह खारवेल से हो गया और राजरानी होकर इन्होंने जैनधर्म के लिए अनेक कार्य किये ! २-"इचप्या सरदार की” पोती ने विजयनगर के राजाओं से स्वतंत्र हो जरसय्या में राज्य किया था। तब से यहां कई वर्षों तक स्रियाँ ही राज्य करती रही । ये सब जैनधर्म की परमभक्त थीं सत्रहवीं शताब्दि के प्रारम्भ में यहां की अंतिम रानी "भैरवदेबी" राज्याधिकारी थीं ! इन पर वेदनूर के राजा वेङ्कटप्य नायक ने आक्रमण किया। रानी बड़ी बहादुरी के साथ लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुई ! 'कोमलाही' ने अपना सबला' नाम सार्थक कर दिया! . ३-गढ़वंश में 'वीराङ्गना सावियब्बे' प्रसिद्धथीं। यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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