Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 1
________________ શ્રી યશોવિજયજી જૈન ગ્રંથમાળા घाघासाहेब, लावनगर. झेन : ०२७८-२४२५३२२ ३००४८४९ दो शब्द । रतीय इतिहास अंधकार में है और जैन इतिहास की उससे कुछ अच्छी दशा नहीं है । अलभ्य और अश्रुतपूर्व इतिहासिक सामिग्री से भरे हुये अनूठे जैनग्रन्थ श्राज भी जैन भण्डारों के अज्ञात कोनों में पड़ उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं ! अब भला ताइये, जैन वीरों का एक प्रमाणिक इतिहास लिखा जाय तो उसे ? इतने पर भी जब मुझे जैनमित्रमण्डल दिल्ली के उत्साही न्त्री जी ने एक ऐसा इतिहास लिखने का आग्रह किया, तो उसको टाल न सका ! जितना कुछ मेरा अबतक का अध्ययन और अनुसन्धान था, उसही के बल पर मैंने 'जैन वीरों के तिहास' की एक रूपरेखा लिख देना उचित समझा! उसी निश्चय का यह फल पाठकों के सम्मुख उपस्थित है । 4003 4003 भा मेरे कई उल्लेखों से, सम्भव है, अन्य विद्वान् सहमत न हों; रन्तु इस डर से मैं उनकी तीक्ष्ण बुद्धि को संतुष्ट करने के कमेले में नहीं पड़ा हूं क्यों कि ऐसा करने से पुस्तक सर्वसाधारण के मतलब की न रहतीं। हाँ, उन जैसे तार्किक पाठकों के सन्तोष के लिये मैं यह बता देना उचित समझता कि मैंने प्रत्येक श्रापत्तिजनक नई बात का प्रामाणिक वर्णन अपने 'संक्षिप्त जैन इतिहास' के दूसरे भाग में कर दिया है, जो प्रेस में है। वे चाहें तो उसे पढ़ कर श्रात्म सन्तुष्टि कर सकते हैं ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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