Book Title: Jain Viro ka Itihas Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Kamtaprasad Jain View full book textPage 5
________________ वीरता के प्रादर्शरूप अनेको महापुरुषों के दृष्टान्त विद्यमान हों। आश्चर्य तो तब होगा यदि उपर्युक्त मत में विश्वास रखते हुए भी वह ऐसे उदाहरणों से खाली हो। वस्तुतः जैन इतिहास उक्त दोनों प्रकार के वीर पुरुषों के प्रमाणों से भरा हुआ है। इनमें से बहुत नहीं तो कुछ ऐसे भी वीर पुरुष हैं जिन्होंने ऐतिहासिक काल में धर्मप्रेम के साथ-साथ देश सेवा के लिये भारी बुद्धिमत्ता और असाधारण पराक्रम का परिचय देकर भारतवर्ष के इतिहास में चिरस्थायी ख्याति प्राप्त की है । तथा जिनके जिनमतावलम्बी होने में किसी को कोई सन्देह नहीं है। पूर्व भारत के कलिंगाधिपति खारवेल, दक्षिण के गंग सेनापति समरधुरंधर चामुण्डराय व होय्सल मंत्री महाप्रचण्डदण्ड नायक गंगराज पश्चिम के गुजरात मंत्री वीरवर वस्तुपाल व तेजपाल तथा मेवाड़ सेनापति भामाशाह इसी प्रकार के वीर योद्धा हुए हैं। खेद का विषय है कि बहुत समय से जैनियों ने अपने इन नर रत्नों का संस्मरण छोड़ दिया अर उनके आदर्श से च्युत होकर अपने प्राचरणों को ऐसा बना लिया जिससे संसार को यह भ्रम होने लगा कि जैन धर्म कायरता का पोषक है । धीरे-धीरे यह भ्रम इतना प्रबल होगया कि स्वयं भारतवर्ष के कुछ प्रतिष्ठित विद्वानों ने अपना यह मत प्रकट कर दिया कि इस देश को भीरु बनाकर उसे पारतंत्र्य के बंधन में बांधने का दाप जैनधर्म को ही है। कितने भारी कलंक की बात है ? सच्वे क्षत्रिय वोरों द्वारा प्रतिपादित तथा वीरात्माओं द्वारा स्वीकृत और सम्मानित जैनधर्म की उसके वर्तमान अनुयायियों के हाथों यह दुर्गति, कि देश में सच्चे वीर उत्पन्न करने का श्रेय तो दूर रहा उलटा उसे कायरता-प्रसार का अप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 106