Book Title: Jain Viro ka Itihas Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Kamtaprasad Jain View full book textPage 7
________________ - ) पूर्ण इतिहास को पूरा करने के लिये पहले दो-एक महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित होने की आवश्यकता है । एक तो अभी तक जैन साहित्य का बहुत सा भाग अप्रकाशित है उसे प्रकाश में लाने की आवश्यकता है दूसरे मूर्तियों, शिलाओं आदि पर के जैनधर्म से सम्बन्ध रखने वाले समस्त लेखो का संग्रह करना आवश्यक है और फिर तासरे उक्त सामग्री से संकलित ऐतिहासिक वार्ता का अन्य साधनों द्वारा ज्ञात इतिहास से मिलान कटने की आवश्यकता है । वस्तुतः यह कार्य प्रस्तुत ही है और स्वयं इस पुस्तक के लेखक उस ओर बहुत परिश्रम भी कर रहे हैं। इस पुस्तक के पढ़ने से उक्त कार्य का महत्त्व व उसके शीघ्र सम्पादित किये जाने की आवश्यकता और भी स्पष्ट हो जाती है । इस दृष्टि से लेखक का प्रयत्न अभिनन्दनीय है । अमरावती किंगडवर्ड कालेज २२-३-३१ प्रोफेसर हीरालाल जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 106