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( २३ ) उस समय भगवान महावीर के अनुयायी बहुत से राजामहाराजा हो गये थे। उन सब का सामान्य परिचय कराना भी यहाँ कठिन है । हाँ, उनमें से किन्हीं खास वीरों का परिचय उपस्थित कर देना उचित है। ___भगवान के इन वीर शिष्यों में सिन्धु-सौवीर के राजा "उदायन" विशेष प्रसिद्ध हैं। अपने जैनधर्म-प्रेम के कारण यह जैनों के दिलों में घर किये हुए हैं। प्रावाल-वृद्ध-वनिता उनके नाम और काम से परिचित हैं । वह जितने ही धर्मात्मा थे, उतने ही वीर थे। एक बार उज्जैन के राजा "चन्द्रप्रद्योत" ने इन पर आक्रमण कर दिया। घमासान युद्ध हुआ। फलतः "चन्द्रप्रद्योत" को खेत छोड़ कर भाग जाना पड़ा। किन्तु "उदायन" ने उसे यूं ही नहीं जाने दिया । उसे गिरफ्तार कर लिया, उज्जैन में राज करने लगा। उसने भी कई लड़ाइयाँ लड़ी और उस समय के प्रख्यात् राजात्रों में वह गिना जाने लगा। किन्तु उदायन का महत्व उससे विजय पा लेने में नहीं; बल्कि तत्कालीन भारतीय व्यापार को उन्नत बनाने में गर्भित है। अाज सामुद्रिक व्यापार के बल यूरोप-वासी मालामाल हो रहे हैं । तब उदायन ने भी भारत को सामुद्रिक व्यापार में अग्रसर बनाने का उद्योग किया था। उनके राज्य में उस समय के प्रसिद्ध बन्दरगाह "सूर्पारक" प्रादि थे। उदायन उनकी उन्नति र समुचित व्यवस्था रख कर भारत का विशेष हितसाधन कर सके थे। जैनवीरों में उनका नाम इन कार्यों से ही
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