Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 84
________________ वंश नष्ट हो जायगा।" ददिग और माधव ने जैनाचार्य को इस प्राक्षा को शिरोधार्य किया और उनकी कृपा से राज्याधिकारी बन गये ! यह ईसवी दूसरी शताब्दि की घटना है और पाठवीं शताब्दि में यह राजवंश उन्नति की शिखर पर पहुँच गया था। ___ गङ्गवंश में "मारसिंहाराजा" बहुत प्रसिद्ध था [ यह बड़ा पराक्रमी और वीर था । इसने राठौड़राजा कृष्णराज तृतीय के लिये उत्तर भारत के प्रदेश को विजय किया था, इसलिये यह गुर्जर राज भी कहलाता था । किरातो, मथुरा के राजाओं, बनवासी के अधिकारी आदि को इसने रणक्षेत्र में परास्त किया था। नीलाम्बर के राजाश्रो को नष्ट करने के कारण यह "बोलम्बकुलांतक" कहलाता था। इस प्रकार रणबांकुरा होने के साथ ही यह एक धर्मात्मा नर रत्न था। जैनधर्म प्रभाव के लिये इसने कई स्थानों पर मन्दिरादि बनवाये थे। अन्त में इसने बंकापुर जाकर श्री अजित सेनाचार्य के चरणों का प्राश्रय लिया था और यहीं समाधिमरण किया था । "रायमल्ल चतुर्थ" इसके उत्तराधिकारी और इन्हीं के समान पराक्रमी और धर्मात्मा राजा थे! उपरोक्त दोनों गहनरेश के मंत्री और सेनापति “वीरवर चामुण्डराय थे। यह ब्रह्म-क्षत्र कुलके भूषण थे और अपने रणकोशल एक राजनीति के लिये अद्वितीय थे इनकी श्रायु का बहुत भाग रणक्षेत्र में ही बीता था, पर तो भी यह धर्म और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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