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( ७६ ) सरदार वायक को कन्या थीं। धोरा के पुत्र वीरवर लोकविद्याधर इनके पति थे। पतिदेव के प्रेम में सरवोर वह वीराङ्गना भी उनके साथ समरभूमि में लड़ाई लड़ने गई। घोड़े पर चढ़ कर और तलवार हाथ में लेकर उसने बड़ी बहादुरी दिखाई । यहाँ तक कि वैरियों के सरदार के हाथी पर इसके घोड़े ने जाकर टाप लगा दीं। इसी समय शत्रु का घातकमाला उसके मर्मस्थल के आर-पार हो गया । वह वीराङ्गना झट सँभल गई
और जिनेन्द्र भगवान का नाम जपती हुई स्वर्गधाम को सिधार गई ! उसके इस अमर कृत्य का दृश्य आज भी श्रवणवेलगोल के जैनमन्दिर में एक शिलापट पर अङ्कित है; मानो वह अपनी बहिनों को वीरता और निशङ्कता का ही पाठ पढ़ा रहा है।
४-बस, आइये पाठक वृन्द, एक जैनवीराङ्गना के अर दर्शन कर लीजिये । यह सरदार नागार्जुन की वीर पत्नी थीं। सरदार नालगोकंड का शासक था और एक पक्का जैनी था । भाग्यवशात् वह समाधिमरण कर गया। राजा अकालवर्ष ने उसका पद उसकी 'वीर पत्नी जमवे' को दे दिया। वह सुचारु रीति से शासन करने लगी। तब का शिलालेख कहता है कि 'यह बड़ी वीर थो, उतम युद्धशक्तियुक्ता थी और जिनेन्द्र-शासन भका थी।' अन्त समय के निकर में इसने अपनी पुत्री के सुपुर्द राज्य कर दिया और स्वयं एक जैनतीर्थ को जाकर शकाब्द ८४० में समाधि ग्रहण कर ली। ___ इन वीराङ्गनाओं के नाम और काम के प्रागे भला बताइये, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com