Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 94
________________ ( ७७ ) इस प्रकार दक्षिण भारत के प्रायः सब ही मुख्य राजवंशों जैनधर्म को आदर मिला प्रगट होता है। उसकी वीर-पूर्ण शिक्षा ने वहां के नरेशों का मन मोह लिया था।अतः दक्षिणभारत को यदि जैनों को राष्ट्र कहा जाय तो बेजा नहीं। पर देखिये तो इन जैन राष्ट्र के कार्य को। इसके साहित्य और शिल्प के अनूठेरत्न देख कर मुग्ध हुये बिना कौन रह सक्ता है । यह जैन शासन की शान्तिमय और अभय वृत्ति का ही शुभ-चिन्ह है। फिर वह भला क्यों न जन कल्याणकारी हो । जैन वीराङ्गनायें। “केवल पुरुष ही थे न वे जिमका जगत को गर्व था ! गृहदेवियाँ भी थी हमारी “देवियाँ सर्वथा !!" आज मनुष्य समाज के जिस मुख्य अङ्ग को लोग 'अबला' नाम पुकारते हैं, जैनधर्म के आलोक में वे भी 'सबल' प्रगट हुई हैं ! इसे जैनधर्म के वीर वातावरण का ही प्रभाव कहिये । है भी यह बात ठीक, क्योंकि भगवान ऋषभदेव ने समाज के इस अङ्ग का महत्व तब ही समझ लिया था और सबसे पहले अपने पुत्रों को नहीं - ब्राह्मी-सुन्दरी नामक पुत्रियों को शिक्षा दीक्षा से संयुक्त किया था! इस अवस्था में यदि जैनधर्मानुयायी महिलायें 'अबला' ही मिले, तो यह जैनों के लिये एक बड़े Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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