Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 102
________________ ( ५ ) बना दिया है-उसका सत्यानाश कर दिया है ? सच पूछिये तो 'किया इस देश को बरबाद, आपस की रुखाई ने । दिलों में पैंर पैदा कर दिया, अपनी पराई ने ॥' अतएव दूसरों को बदनाम करने और आपस में लड़ने के बजाय यदि संयम अोर सत्यता से वर्तना हम न भूलते तो पूर्वजो की गुणगरिमा से हाथ न धो बैठते ! जैन और हिन्दू वीरों ने तो आज नहीं-विजय नगर राज्य में ही प्रेम पूर्वक सहयोग द्वाग संगठन की नींव जमा दी थी। तब जैनधर्म और हिन्दूधर्म साथ साथ फले फूले थे। उन्हों ने एक काबिल दो जान हो कर देश अर धर्म की रक्षा की थी ! तबका राजधर्म यद्यपि वैष्णव था; परन्तु जैन धर्म को भी राजाश्रम [मिला था ! इस पारस्परिक आत्म विश्वास और सहयोग का ही परिणाम था कि सेनापति इस गप्प और वीरवर बैचप्प जैसे जैन वीरों ने देश और धर्म की रक्षा में अपने हिन्दू राजाओं का पूरा हाथ बटाया था। बैचप्प ने तो देश की बलिवेदी पर अपने प्राणों को ही उत्सर्ग कर दिया था। किन्तु वह वीर तो अपने इस कर्तव्यपालन से अमर होगये और उन जैसे अन्य वीर भी अपनी कीर्ति को अमिट बना गये हैं; पर हाँ, हमें भी वह एक जीता जागता सन्देश दे गये हैं । वह सन्देश क्या है ? हम से न पूछिये । उनके जीवन चरित्रों को पढ़ कर स्वयं उनके सन्देश को समझ लीजिये और यदि उसे समझ ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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