Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 83
________________ ( ६६ ) गोला में समाधिमर्ण किया । उपरान्त चालु का राज्याधिकारी हुये। चालुक्यों के समय में राष्ट्रकूट के वंशज उनके करद थे। यह 'सौन्दति के शासक' और जैनी थे। 'पृथ्वीराम, पिहुग, शान्ति वर्मा, आदि इनके नाम थे और यह सामन्त कहलाते थे। उपरान्त इन्होंने 'वेणुग्राम' (बेलगाम) को अपनी राजधानी बनाया था। इन राह राजाओं ने सन् १२०८ में गोश्रा को अपने अधिकार में कर लिया था ! इन्होंने ही बेलगाम का किला बनवाया था। ४-'गङ्गवंश' के राजा मैसूर में ई० चौथी शताब्दि से ग्यरहवीं शताब्दि तक राज्य करते रहे। राष्ट्रकूटो को तरह यह भी जैनधर्म के बड़े भारी उपासक थे । राष्ट्रकूटों और गङ्ग राजाओं की घनिष्टता भी अधिक थी! इनकी पहली राजधानी कोलार और फिर तलकाड थी! इस वंश की स्थापना जैनाचार्य "सिंहनन्दि" की सहायता से हुई थी। ददिग और माधव नामक दो राजकुवर दक्षिण की ओर भटकते २ पहुँचे। सिंहनन्दि जी से उनकी भेंट हो गई। प्राचार्य ने उन्हें अपनी शरण में ले लिया और उनसे कहा-“यदि तुम अपनी प्रतिज्ञा भङ्ग करोगे, यदि तुम जिन शासन से हटोगे, यदि तुम पर स्त्री को ग्रहण करोगे, यदि तुम मद्य व मांस खाओगे, यदि तुम अधर्म का संसर्ग करोगे, यदि तुम आवश्यक्ता रखने वालों को दान न दोगे, और यदि तुम युद्ध में भाग जानोगे, तो तुम्हारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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