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(६४) वंश में सत्याश्रय पुलिकेशी द्वितीय के समान प्रतापी राजा दूसरा नहीं था। ऐहोल के जैनमंदिर से इसका एक शिलालेख मिला है। उसमें लिखा है कि 'महाराजाधिराज सत्याश्रय ने कौशल, मालवा, गुजरात, महाराष्ट्र, लाट, कोङ्कण, काञ्ची श्रादि देशों को अपने राज्य में मिलाया था। मौर्य, पल्लव, चोल, केरल
आदि राजाओं को पराजित किया था ! जिन राजाधिराज हर्ष के पादपत्रों में सैकड़ो राजा नमते थे, उनको भी इसने परास्त किया। राष्ट्रकूट राजागोविन्द को भी इसने हराया ! इस महान् वीर का कृपापात्र कवि कालि दास की बराबरी करने वाला जैन कवि "रविकीर्ति" था। ___ यद्यपि पाटवीं शताब्दि के मध्यभाग में राष्ट्रकूटों ने दक्षिण में चालुक्यों के राज्य की इति श्री कर दी थी, परन्तु दशमी । शताब्दि के अंतिम भाग में चालुक्यों के तैल नामक राजा ने फिर उसकी जड़ जमा दी थी। इनमें "जयसिंह प्रथम” नामक राजा प्रसिद्ध है। बलिपुर में शान्तिनाथ भगवान की इसने प्रतिष्टा कराई थी। जैनाचार्य वादिराज की इसने सेवा की थी।
३-राष्ट्रकूट राजवंश प्रारंभ से ही जैधर्म का संरक्षक रहा है। इस वंश के प्रायः सबही राजाओं ने जैनधर्म को अपनाते हुये देश के लिये ऐसे ऐसे कार्य किये हैं, कि उनके लिये स्वतः मस्तक नत हो जाता है। यहां पर हम इस वंश के प्रख्यात् राजा अमोगवर्ष का परिचय कराना ही पर्याति समझते हैं। ____ "अमोघवर्ष" गोविन्द तृतीय के पुत्र थे। शायद इनका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com