Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 70
________________ (५३) दी और मेवाड़ के उद्धारक होने का श्रेय इन्हें प्राप्त हुआ !* इन जैनवीरों से ही आज जैनधर्म का टिम-टिमाता हुआ दीवा अपूर्व रूप से प्रदीप्त है ! किन्तु भामाशाह के पहले जैनवीर 'पाशाशाह' मेवाड़ के राणावंश की रक्षा करने में सफल हुये थे। बात यह थी कि मेवाड़ में एक बनवीर नामक सरदार राणा विक्रमाजीत को मारकर अधिकार जमा वैठा था। उसने राणा कुल को समूलनष्ट करने का निश्चय कर लिया था। शिशु उदयसिंह ही उसकी अॉखों में खटक रहा था; किन्तु स्वामी भक्त धाय पन्ना ने उन्हें बाल बाल बचा लिया । वह शिशु उदयसिंह को लेकर राजपूत राजाओं के पास गई, परन्तु किसी ने भी उनकी रक्षा करने का साहस न दिखाया ! हठात् पन्ना कमलमेर पहुँची। आशाशाह नामक जैन राजपूत वहाँ राज्य कर रहा था । पन्ना आशाशाह से विश्रामगृह में मिली। उसने पहुँचते ही राजकुमार को प्राशा की गोद में रख कर कहा-"अपने राजा के प्राण बचाइये।” अाशाशाह यह देख कर अवाक् रह गये। उनकी हिम्मत न पड़ी कि वह राजकुमार को प्राश्रय दें। किन्तु अाशा की माँ वहाँ मौजूद थों । पुत्र की यह कायरता देख कर वह तड़प कर बोलीं-"स्वामी में हित रखने वाले, स्वामी का हित साधन करने के लिए किसी समय विपत्ति या विन्न से नहीं डरते । राणा समरसिंह का पुत्र तुम्हारा स्वामी है; विपत्ति में * विशेष के लिए "अनेकान्त" भा. १ पृ.२४७-२५२ देखिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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