Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 69
________________ (५२) के मिले हैं जिन से प्रकट है कि “उसने अपने सचरित्र से मरु, माड़, वन, तमणी, अज (आर्य) एवं गुर्जस्त्रा के लोगों का अनुराग प्राप्त किया; वड़णाणयमण्डल में पहाड़ पर की पल्लियों (पालों, भीलों के गाँवों ) को जलाया; रोहित्सकूप (घटियाले) के निकट गाँव में हट्ट (हाट) बनवा कर महाजनों को बसवाया; और मंडोर तथा रोहित्सकूप गाँवों में जयस्थम्भ स्थापित किये । कक्कुक न्यायी, प्रजापालक एवं विद्वान् था।" ( २६) मेवाड़ राज्य के वीर ! मेवाड़ के राणावंश की उत्पत्ति उसी वंश से है, जिसमें प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव ने जन्म लिया था। अतः इस वंश से जैन धर्म का सम्पर्क होना स्वभाविक है। कर्नल टॉड सा० का कहना है कि राणावंश-गिल्हौत कुल के श्रादि पुरुष जैनधर्म में दीक्षित थे। इस वंश में आज भी जैनधर्म को सम्मान प्राप्त है! राणाश्रों के सेनापति और राज मन्त्री होने का सौभाग्य कई एक जैनवीरों को प्राप्त था। उनमें भामाशाह' विशेष प्रसिद्ध हैं । इन्होंने महाराणा प्रताप की उस अटके में सहायता की थी, जब वह निरुपाय हो देश से मुख मोड़ कर चले थे। भामाशाह ने प्रताप के चरणों में अपनी अतुल धनराशि उलट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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