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(५०) करोड़ साधुओं के गुरु थे और जैन थे। सचमुच जैनधर्म क्षत्रियों का ही धर्म है । महान् क्षत्री वीर इसके संरक्षण में जगत का कल्याण करते हुये, अन्ततः प्रात्मकल्याण में निरत .. होही जाते हैं । वीरभद्र जी ने भी यही किया था।
(२६) नाडौल के चौहान वीर। नाडौल के चौहान राजकुल में जैनधर्म को विशेष स्थान प्राप्त रहा है । 'अश्वराज' जैनधर्म के भक्त और कुमारपाल के सामन्त थे। इन्होंने अहिंसाधर्म का प्रचार राजाज्ञा निकाल कर किया था। इनके अतिरिक्त 'अल्हणदेव', 'केल्हण', 'गजसिंह', कीर्तिपाल' प्रभृति चौहानवीर भी जैनधर्म प्रेमी थे।
इस कुल के संस्थापक 'राव लक्ष्मण' (लाखा) अजमेर के चौहान* घराने से सम्बन्धित थे। लाखा एक महा पुरुष थे। वीरता और देशभक्ति में उनका कोई सानी नहीं था। उनके २४ पुत्र-रत्नों में एक 'दादराव' था, जो जैनधर्म में दीक्षित हो गया था । जोधपुर के भण्डारीगोत्र के जैनी इसे अपना पूर्वज बताते हैं । भण्डारोगोत्र को 'रघुनाथ', 'खिमसी', 'रतनसी' आदि अनेक वीर-नर-रत्नों ने प्रकाशमान बनाया; जिनका __ *अजमेर के चौहान घराने में भी जैनधर्म की गति थी। पृथ्वीराज द्वितीय ने मोराकुरी गाँव और सोमेश्वर ने रेवणा गाँव बीजोलिया के श्रीपार्श्वनाथ जी के मन्दिर को दान किये थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com