Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 75
________________ ( ५८ ) पूछिये तो उस समय राज्य यही करते थे; क्योंकि मानसिंह तो अपने यवन स्वामियों की सेवा में व्यस्त रहते थे । इन्होंने नवाब अब्दुल्ला खाँ से युद्ध किया था । भण्डारी वंश के जैन वीरों के मारवाड़ ( जोधपुर ) राज्य सम्बन्धी सेवाओं का हम पहले ही उल्लेख कर चुके हैं। किन्तु मारवाड़ राज्य के दो जैन सेनापति प्रसिद्ध हैं ! ये हैं ( १ ) इन्द्रराज और ( १ ) धनराज ! ये दोनों वीर श्रीसवाल जाति के सिंघवी कुल में उत्पन्न हुये थे । इन्द्रराज ने बीकानेर और जयपुर राज्य से लड़ाइयां लड़ी थीं ! x X मारवाड़ के महाराज विजयसिंह ने सन् १७८७ में अजमेर को फिर मरहठों से जीत लिया, तो उन्होंने धनराज को वहाँ का शासक नियुक्त कर दिया । किन्तु इस घटना के तीन-चार वर्ष बाद ही मरहठो ने अजमेर को फिर श्री वेरा । मरहठों का जेनरल डीवॉमन नामक फ्रेञ्च सैनिक था । धनराज के पास यद्यपि थोड़ीसी सेना थी, किन्तु उन्होंने बड़ी चतुराई से शत्रु का सामना किया। उधर विजय सिंह ने पाटन युद्ध के बुरे परिणाम के कारण यह हुक्म भेजा कि अजमेर छोड़ कर धनराज चले श्रायें ! भला, एक वीर योद्धा क्या इस तरह शत्रु को पीठ दिखा सकता था ? कदापि नहीं ! परन्तु धनराज राजा का भी उल्लङ्घन नहीं करना चाहता था । श्रतः उसने अपने प्राणों को देश के नाम पर निछावर कर दिया और उसके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com x

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