Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 73
________________ (५६) इधर रायसिंह भी मर गया; परन्तु अपने पुत्र सूरसिंह को वह बच्छावतों से बदला चुकाने के लिए सावधान करता गया । बेटे ने बाप का कहना न भुलाया । वह दिल्ली गया और चिकनी चुपड़ी बातें बना कर भागचन्द और लक्ष्मीचन्द को सकुटुम्ब बीकानेर ले आया । ये लोग सानन्द अपनी पितृभूमि में आकर रहने लगे। किन्तु अभी दो मास से अधिक समय नहीं हुआ था कि एक दिन उन्होंने अपने राजमहल को सूरसिंह के सिपाहियों से घिरा हुआ पाया । राजा की नीचता को वह ताड़ गये। अपने नौकरों सहित वह वीरों की भाँति मरने के लिए तैयार हो गये। स्त्रियों ने जौहरव्रत ग्रहण कर लिया और वे बहुमूल्य वस्त्राभरणों सहित अग्नि में जल मरीं । इधर पुरुषवर्ग ने केसरिया कपड़े पहने और तलवार हाथ में लेकर वह सिपाहियों से जुट पड़े। देखते ही देखते वे वीर धराशायी हो गये । किन्तु सूरसिंह के इतना करने पर भी बच्छावतों का नाम-निशान न मिटा । इस गड़बड़ में एक गर्भवती बच्छावत रमणी बच कर भाग निकली और अपने मायके में वह जा रहीं । बच्छावतों का उत्थान और पतन जैनवीरता का एक अनूठा नमूना है। बीकानेर में महाराज सूरतसिंह ( १७८७-१८२८) राज्य कर रहे थे। इनके सैनापति श्री अमरचन्द्र जी सुराना श्रोसवाल जैन थे। यह अपने पराक्रम और वीरता के लिए प्रसिद्ध ___*विशेष के लिए देखो "जैनवीरों का इतिहास और हमारा पतन ।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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