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(५५) बीकानेर की श्रीवृद्धि के साथ-साथ बच्छावतो का यश और प्रभाव भी बढ़ने लगा था। उन्हें बीकानेरे राज्य की दीवान पदवी प्राप्त थी और उनमें ऐसे अनुभवी और विद्वान् नर-रत्न उत्पन्न हुए, जिन्होंने 'अपनी बुद्धि और कार्यकुशलता से केवल राजकार्यों को ही नहीं किया, किन्तु सैनिक कार्यों में भी बड़ी प्रवीणता दिखलाई'। इनमें 'वरसिंह' और 'नगराज' दो प्रसिद्ध वीर थे । इन्होंने मुसलमानों से लड़ाइयाँ लड़ी थीं और जैनधर्म प्रभावना के अनेक काय किये थे।
___ इस वंश का अन्तिम महापुरुष 'करमचन्द' राव रायसिंह का दीवान था । जयपुर राज्य से इसने सन्धि करके बीकानेर राज्य की रक्षा की थी। किन्तु हठी और अपव्ययी रायसिंह ने राज्य के सच्चे हितैषी कर्मचन्द को नहीं पहचान पाया । कर्मचन्द की सुनीति पूर्ण शिक्षा के कारण रायसिंह उससे रुष्ट हो गया और उसने उसे मरवा डालने का हुक्म चढ़ा दिया । कर्मचन्द इस हुक्म की ख़बर पाते ही दिल्ली भाग गया और अकबर की शरण में जा रहा । अकबर का ध्यान जैनधर्म की ओर उसी ने आकर्षित किया। अकबर के कोषाध्यक्ष टोडरमल जी और दरबारी थिरोशाह भनसाली भी जैनी थे। इनके सहयोग को पाकर उसने बादशाह से जैनधर्म के लिए अनेक कार्य कराये थे। कर्मचन्द अपने दो पुत्रों भागचन्द और लक्ष्मीचन्द को छोड़ कर दिल्ली में ही स्वर्गवासी हो गया था।
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