Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 63
________________ ( ४२ ) (१८) सोलंकी-वीर-श्रावक! सन् ६७२ से चालुक्यों का अधिकार गुजरात पर होगया। यह वंश 'सोलङ्की' कहलाता था। मूलराज, चामुड़, दुर्लभ, भीम, कर्ण, सिद्धराज, जयसिंह श्रादि इस वंश के प्रारम्भिक राजा थे और इन्होंने जैनधर्म के लिए अनेक कार्य किये थे और लड़ाइयाँ तो एक नहीं अनेक लड़ी थीं। किन्तु इनमें सम्राट “कुमारपाल" प्रसिद्ध वीर थे । यह पहले शैव थे; परन्तु हेमचन्द्राचार्य के उपदेश से इन्होंने जैनधर्म धारण कर लिया था। अब सोचिये पाठक वृन्द, यदि जैनधर्म की अहिंसा कायरता की जननी होती तो क्या यह सम्भव था कि कुमारपाल जैसा सुभठ और पूर्व लिखित अन्य विदेशी लड़ाकू वीर उसे ग्रहण करते ? कदापि नहीं। किन्तु यह तो जैन-अहिंसा का ही प्रभाव था कि बाँके वीरों ने उसकी छत्रछाया श्राह्लाद और शौर्यवर्द्धक पाई । हाँ, तो सम्राट् कुमारपाल जैनी हो गये और इस पर भी उन्होंने बड़े-बड़े संग्रामों में अपना भुजविक्रम प्रकट किया। नागेन्द्रपतन के अधिपति कण्हदेव उनके बहनोई थे। कुमारपाल को राजा बनाने में इन्होंने पूरी सहायता की थी, क्योंकि सिद्धराज के कोई पुत्र नहीं था और कुमारपाल उनका भाग्नेय था। इस सहायता के कारण ही कराहदेव को कुछ न समझता था । और इसी उद्दण्डता के कारण कुमारपाल ने उसे यमShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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