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( ३६ ) का ज़माना था। स्कन्धगुप्त राज्य कर रहे थे। तब वुलन्दशहर के पास एक क्षत्रीवंश सन् ७८ ई० से राज्य करता आ रहा था। और उस समय पुष्पमित्र राजा शासवाधिकारी थे। यह राजा अपने पूर्वजों की भान्ति एक भक्तवत्सल जैन था। स्कन्धगुप्त ने इस पर भी धावा बोल दिया। राजा बहादुरी के साथ लड़ा, परन्तु सम्राट् स्कन्धगुप्त के समक्ष वह टिक न सका!*
(१४) गुजरात के वल्लभी राजा। गुप्त राजाओं के बाद गुजरात में वजभी वंश के क्षत्री राजा अधिकारी हुए थे। इस वंश के कई वीर नरेश जैनधर्मानुयायी थे। पाँचवीं शताब्दि में राजा "शिलादित्य" ने जैनधर्म ग्रहण किया था। इनकी राजधानी का नाम वजभी था। इसीवंश के राजा "ध्र वसैन" प्रथम (५२६-५३५ ई०) के समय में श्वेताम्बराचार्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने श्वेताम्बर श्रागम ग्रंथों को लिपिबद्ध किया था। इस वंश के बाद गुजरात में चालुक्य और राष्ट्रकूटवंशों ने राज्य किया। इन वंशो के जैनवीरों का उल्लेख हम आगे करेंगे।
* बं० प्रा० जैम स्मार्क पृ० १८७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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