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( ३७ ) राजा गर्दभिल्ल के पुत्र थे । शकनरेशों ने गर्दभिल्ल को परास्त कर दिया था। विक्रमादित्य प्रतिष्ठान में जा रहा था और वह आन्ध्रवंश का राजा था। उसने शकों को हराकर अपने पैतृक राज्य पर अधिकार जमाया था । विक्रमादित्य सा न्यायी और पराक्रमी राजा होना, सुगम नहीं है !
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(११) आन्ध्रवंशीय जैन वीर। श्रान्ध्रदेश में जैनधर्म का प्रचार मौर्यकाल से बहुत पहले होगया था।* इसी वीर धर्म की आन्ध्र में प्रधानता होने के कारण, वहाँ अनेक शूरवीरों का प्रादुर्भाव हुआ था । आन्ध्रवंशी कई एक जैनधर्म के भक्त थे। सबाट 'शातकाणि द्वितीय अथवा पुणमाथि एक जैनवीर थे। इसी तरह इस वंश के हाल राजा का जैन होना सम्भव है। कहते हैं कि इन्होंने ही पुनः शको को भगा कर अपना 'सालिवाहन-सम्बत्' चलाया था। 'साल' और 'हाल' शब्द पर्यायवाची हैं । ("शाला हालो मत्स्यभ है" -हेमे अनेकार्थ कोष)
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* स्टडीज इन साउथ इंडियन जैनीज्म, मा० २ पृ०२
+ जैन साहित्य संशोधक भा० १ अंक ४ पृ२०४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com