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इसी के वंश में 'क्षत्रिय रुद्रसिंह' हुये थे । वह निस्सन्देह जैनभक्त थे । उन्होंने जूनागढ़ पर जैनों के लिए गुफायें और मठ बनवाये थे !*
इस प्रकार जैनाचार्यों ने धर्म प्रभावना का वास्तविक रूप तब प्रगट कर दिया था ! इन यूनानी शक आदि जाति के शासकों को 'म्लेच्छ' कहकर अधूत नहीं करार दे दिया था; बल्कि उनको जैनी बनाकर धर्म की उन्नति होने दी थी ! यह जैनधर्म की वीर - शिक्षा का ही प्रभाव था कि जैनधर्म अपने प्रचार कार्य में सफल हुये थे ।
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सम्राट् विक्रमादित्य |
सम्राट् विक्रमादित्य हिन्दू संसार में प्रख्यात् हैं। पहले वह शैव थे । उपरान्त एक जैनाचार्य के उपदेश से वे जैनधर्म भुक्त हो गये थे । उनका समय सन् ५७ ई० पू० है और वह अपने सम्बत् के कारण बहु प्रसिद्ध है । अब इनके व्यक्तित्व को विद्वज्जन ऐतिहासिक स्वीकार करने लगे हैं और वे उनका महत्व शक लोगों को मार भगाने में बतलाते हैं । बात भी यही है ! विक्रमादित्य मालवा के
* इंडियन एन्टीकरी भा० २० पृ ३६३
+ काबिज हिस्ट्री आल इण्डिया भी १ १६७-१६८ व पृष्ट ५३२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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