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( ३४ ) गुफायें बनवाई थीं। किन्तु धर्म प्रभावना का यथार्थ कार्य खाखेल कुमारी पर्वत पर जैनसंघ को ऐकत्र करके जिनकल्याणकोत्सव मनाकर किया था उस समय जैनों के तीन प्रधान केन्द्र थे-(१) मथुरा (२) (उज्जैनी (३) और गिरिनगर (जूनागढ़) इन केन्द्रों से प्रधान २ प्राचार्य वहाँ पहँचे थे। तथापि देश के अन्य भागों से भी जैनी श्रावक और साधु एकत्र हुए थे। बड़ा आनन्द और समारोह हुआ था। इस साधु संघ ने लुप्तप्रायः अंग-ज्ञान में से 'विपाकलूत्र' के उद्धार' करने का प्रयत्न किया था। किन्तु अभाग्य से वह अब लुप्त हो रहा है। इसी समय देश के चारों कोनों में धर्मोपदेशक भेजकर खाखेल ने जैनधर्म की पूर्व प्रभावना की थी !
उपरान्त कुमारी पर्वत पर ही समाधिमरण करके वह स्वर्गधाम पधारे थे। भारतीय इतिहास में उनसे वीर वही हैं !
भारतीय-विदेशी जैन वीर । जैन सम्राट् खाखेल के बाद दस-बीस वर्ष तक कोई प्रभाव शाली जैनराजा नहीं हुआ; परन्तु तो भी जैनों का प्राबल्य देश में क्षीण नहीं हुआ था। जैनाचार्य देश भर में विहार करके धर्म प्रचार कर रहे थे। किन्तु भारतीय राष्ट्र में आपसी ऐचतान के कारण ऐक्य नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com