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करके अपना लोहा जमा लिया । फिर वह मगध राज्य में पहुँचे और वहाँ के प्रबल राजा को भी बात की बात में परास्त कर दिया । इसके बाद वह अपनी राजधानी को लौट आये । इस प्रकार प्रायः सम्पूर्ण भारत में उनके प्रभुत्व की छाप लग गई थी । ठेठ दक्षिण के पाण्डय चेर आदि राज्यों ने भी उनका अधिपत्य स्वीकार कर लिया था। यही क्यों ? बल्कि उनके प्रभुत्व की धाक विदेशी शासक दिमत्रय पर भी ऐसी पड़ी कि वह अपना बोरिया बदना बाँध कर चम्पत हुआ !
श्रुतः खाखेल भारत के सार्वभौम चक्रवर्ती और उद्धारक हो गये थे । उनके संग्राम-नैपुण्य और सैन्य संचालन की दक्षता और शीघ्रता को देखकर विद्वान् उन्हें भारतीय नैपोलियन मानते हैं । और इसमें शक नहीं कि वह अपने इन गुणों में नेपोलियन से भी कुछ अधिक थे। इस नैपोलियन और भारतोद्धार को जन्म देने का सौभाग्य भो जैनधर्म को प्राप्त है ।
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सम्राट् खाखेल ने जो शौर्य भारत - विजय में प्रकट किया, वैसा ही पौरुष उन्होंने धर्म कार्य करने में दर्शाया । वह एक व्रती श्रावक थे और उन्होंने कुमारी पर्वत पर यम-नियमों के द्वारा व्रताचारण का अभ्यास करके भेद विज्ञान को पा लिया था । उनकी दो रानिया थीं - (१) सिंधुडा (२) बीजरघरवाली । यह भी उनकी तरह जैनधर्म की परमोपासक थी । इन सबने मिलकर कुमारीपर्वत पर अनेक जिनमन्दिर और जिनविम्ब ( दिगम्बर) प्रतिष्ठित कराये और जैनमुनियों के लिये अनेक
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