Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ ( ४१ ) धिकारी रहे। इनके समय में जैनधर्म और साहित्य की विशेष उन्नति हुई थी ! इस वंश के राजा 'कीर्तिवर्मा' 'विनयादित्य' 'विजयादित्य' और 'विक्रमादित्य' ने जैन संस्थाओं को दान दिया था। इनकी राजधानी बंकापुर जैनधर्म का केन्द्र था। वहाँ पाँच महाविद्यालयों की स्थापन हरिकेसरी देवने की थी किन्तु चालुक्यवंशमे 'सत्याश्रय पुलकेशी' द्वितीय के समान कोई भी प्रतापी राजा नहीं था। -० (१७) गुजरात के राष्ट्रकूट राजा। सन् ७४३ ई० से गुजरात में राष्ट्रकूट राजाओं का अधिकार होगया । इस वंश के राजाओं द्वारा जैनधर्म की विशेष प्रभावना हुई थी। 'प्रभूतवर्ष द्वितीय ने जैनगुरु अर्ककीर्ति को दान दिया था । 'कर्कप्रथम' (८१२-८२१) ने नौसारी के जैनमन्दिर को एक गाँव भेंट किया था। यह राजा वीरता में नाम पैदा करने के लिये किसी से पीछे नहीं रहे थे। सन् ६७२ ई० में गुजरात फिर चालुक्य राजाओं के अधिकार में चला गया था। इसही समय 'चावड़वंश' का अधिकार भी गुजरात में रहा था। वनराज और योगराज प्रभृति राजा पराक्रमी थे। उन्होंने जैनधर्म को सहायता पहुँचाई और उसे धारण किया ।* *विशेष के लिये "जैनवीरों का इतिहास और हमारा पतन" देखिए. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106