Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 48
________________ ( ३१ ) सम्राट ऐल खारवेल। इतिहास से बहुत पहले की वात है। तब तक ब्राह्मणवर्ग ने आर्षवेदो को कलङ्कित नहीं किया था। वेदों के अनुसार यज्ञों के मिस से हिंसा नहीं की जाती थी। तब कौशल में हरिवंश का राजा दक्ष राज्य करता था। इला उसकी रानी थी । ऐलेय पुत्र और मनोहरी कन्या थी । दक्ष मनोहरी के रूप पर पागल हो गया। उसने उसे अपनी पत्नी बना लिया । गनी इला इस पर कुढ़ गई। उसने ऐलेय को बहका लिया और वे माता-पुत्र विदेश को चल दिये। वे दुर्गदेश में पहुँचे और वहाँ इलावर्द्धन नामक नगर बसा कर बस गये। इसके बाद ऐलेय अङ्गदेश में ताम्रलिप्त नामक नगरी की नींव जमाने में सफल हुए । फिर वह एक सच्चे जैनवीर के समान दिग्विजय को निकले । इस दिग्विजय में उन्होंने नर्मदा तट पर माहिष्मती नगरी की स्थापना की। उपरान्त अपने पुत्र कुणिम को राज्य दे कर मुनि हो गये। अब भला बताइये ऐसे साहसी और पराक्रमी पूर्वज को ऐलेय के वंशज कैसे भूलते ? उन्होंने श्रप नाम के साथ प्रयुक्त होने वाले विरुदों में 'ऐल' विरद को रक्खा । सम्राट् खारवेल के नाम के साथ 'ऐल' विरद का होना, उन्हें हरिवंशी प्रकट करने के लिए पर्याप्त है। तिस पर ऐल के शधरों ने ही चेदिराष्ट्र की स्थापना विन्ध्याचल के सन्निShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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